अरविंद श्रीवास्तव की पांच कविताएं
लाल मिर्च और हमारा प्रेम
और इस संताप को भी आत्मा ने आत्मसात कर लिया था
अंततः परिणाम सुखद और आनंदमयी सन्निकट थे
एक सुन्दर समय
उत्सव के ढेर सारे अवसर
साथ लाता है
लाख मनाही के बावजूद प्रेम
और घातक विचारों से सराबोर होता है
मिर्च-से सुर्ख रंगों में
हम देखना नहीं चाहते तब
हकीकतों को खुली आँखों से
हमें सोचने का पूरा-पूरा हक़ देती है
और मौक़ा भी लाल मिर्च
हमारे प्रेम में लाल मिर्च-से तीखे सवालात
गुज़रते रहते हैं
और हम जुटे होते हैं इस कायनात को
अधिक बेहतर बनाने की जुगत में
शुक्रिया लाल मिर्च
तुम्हारा असाधारण प्रेम
साधारण के पक्ष में
बात कोई ठकुरसुहाती नहीं !
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और अधिक..
स्त्रियों को बाजार में
आभूषण की जरुरत नहीं थी
बल्कि आभूषण को थी
स्त्रियों की जरुरत !
एक खूबसूरत दुनिया का विजन
इनदोनों की बदौलत साकार हो रहा था
ग्लोबल मार्केट में
दोनों तराशे जा रहे थे
और अधिक चिकना
और अधिक चमकदार
और अधिक कुलीन !
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मुश्किल समय में
यह समय
ईमानदारी से मुझे स्वीकारने के लिए
तैयार नहीं है
मैं पतलून की पॉकेट में सिगरेट नहीं रखता
सैंतालिस वर्षों बाद भी
दिखा जाता हूँ अक्सर
सड़क किनारे या पोस्टऑफिस के आसपास
साइकिल का पंक्चर बनवाते हुए
मशहूर कवियों से मेरे ताल्लुकात हैं
यह महसूस कर खुश हैं मेरे बच्चे
मुश्किल समय में
मैं अभी उबाऊ नहीं बना हूँ !
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देह
आखिर यह देह भी पंचतत्व में विलीन हो जायेगी
इस देह को अपने कर्मों की सज़ा मिलेगी
प्रेम के अलावे मैंने कोई गुनाह नहीं किया !
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पूर्णाहुति
तापमान गिर चुका है
कलेजे को मिल रही है ठंढक
चुनाव नतीजे आते ही
साहित्यकार
बैरक में लौट चुके हैं !
संपर्क:
कला कुटीर, अशेष मार्ग,
मधेपुरा- 852113. बिहार
e mail- arvindsrivastava39@gmail.com
ग्लोबल मार्केट में
दोनों तराशे जा रहे थे
और अधिक चिकना
और अधिक चमकदार
और अधिक कुलीन !….वाह भाई अरविन्द जी !