डॉ भावना की तीन कविताएं
उस रात
जब बेला ने खिलने से मना कर दिया था
तो ख़ुशबू उदास हो गयी थी
उस रात
जब चाँदनी ने फेर ली अपनी नज़रें
चाँद को देखकर
तो रो पड़ा था आसमान
उस रात
जब नदी ने बिल्कुल शांत हो
रोक ली थी अपनी धाराएँ
तो समन्दर दहाड़ने लगा था
उस रात
जब बेल ने मना कर दिया पेड़ के साथ
लिपटने से
तो ……पहली बार पेड़ की शाखाएँ
झुकने लगी थीं
और बेल ने जाना था अपना अस्तित्व
पहली बार
बेला को नाज़ हुआ था अपनी सुगंध पर
चाँदनी कुछ और निखर गयी थी
नदी कुछ और चंचल हो गयी थी
पहली बार
प्रकृति हैरान थी
बहुत कोशिश की गयी
बदलाव को रोकने की
परंपरा -संस्कृति की दुहाई दी गयी
धर्म -ग्रंथों का हवाला दिया गया
पर ….. स्थितियां बदल चुकी थीं
2
बित्ते- भर सुख
मुझे
तलाश है बित्ते -भर सुख की
जिसकी आधी छाँव में
ढक सकूँ अपना आधा सिर
और पनप आये
दिल के किसी कोने में
छाँव का सुख
मुझे
तलाश है एक चीवर की
जिसके एक छोर थामे
मैं चलूँ अनजानी राह
बातें करूँ अनजानी पगडंडियों से
किस्से सुनूँ पेड़ और झाड़ियों के
समझ सकूँ
जानवरों का दर्द
जो भटक रहे हैं जंगल की तलाश में
मुझे
तलाश है उस बून्द की
जो किसी नलके में अटकी
सूर्य की किरणों को समीप पाकर
बिखेर देती है कई रंग
गिर कर विलीन होने से पहले
3
बताइये मेरी क्लास क्या है ?
हथिया नक्षत्र ने
दिखा दिया है अपना जादू
बारिश की बूँदें
बूंदें नहीं रहीं धार हो गयी हैं
मूसलाधार
गड्ढे ,नदी -तालाब
सभी भर गये हैं
उमड़ पड़ी हैं जलधाराएं
जिसमें डूब गये हैं खेत -खलिहान
खुश हैं मिडिल -क्लास
कि उमस भरी गरमी से
मिल गयी है निजात
नाखुश हैं लोअर -क्लास
कि मूसलाधार बारिश ने
ढाह दिये हैं इनके घर
छीन लिया है आशियाना
खुश हैं बच्चे
कि कादो से सन जायेंगी गलियां
और लाख मना करने पर भी
ढाब बने खेत से
मार लायेंगे बोआरी मछरी
वन -विभाग के ऑफिसर खुश हैं
कि आंधी -पानी में गिरे पेड़
बढ़ा देंगे उनकी आमदनी के स्रोत
इस बीच
जबकि हथिया
अब भी दिखा रहा है अपना जादू
मुझे तलब हो आयी है
पकौड़े संग चाय की
बताइये मेरी क्लास क्या है ?
भावना
बलुआ निवास ,आवास नगर
बैरिया ,मुज़फ़्फ़रपुर ,बिहार 842003
डॉ भावना की कविताए बहुत जीवंत लगी