विभूति कुमार मिश्र की दो कविताएं
एक मैं पुरुष हूं मुझे स्त्रियों का मनोविज्ञान नहीं पता मुझे पता है प्रेम और वासना का अंतर देह मिलन में प्रेम की पराकाष्ठा झलकी है विलीन हो जाने की आग धधकी है देह ने अपना काम किया है ह्रदय साम्राज्ञी को भी क्षणिक दूर किया है पुनः प्रेम ही...
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