केशव शरण की ग़ज़लें
1.
पता है फिर ख़राबी से जलन क्यों हो रही मुझको
कपट की कामयाबी से जलन क्यों हो रही मुझको
नवाबी शान इसके मालिकों की कोफ़्त देती क्या
मुलाज़िम की नवाबी से जलन क्यों हो रही मुझको
बचा हूं मैं अगर तो श्रेय है बेरंग पानी का
गरल गाढ़े गुलाबी से जलन क्यों हो रही मुझको
कभी मैंने न पी हो तो करूं आलोचना उसकी
नये-चिर हर शराबी से जलन क्यों हो रही मुझको
दिया है ज्ञान क्या कम ज़िंदगी की पाठशाला ने
किसी आदम किताबी से जलन क्यों हो रही मुझको
2.
किसी पर दिल लुटाते हैं ज़रूरत से ज़ियादा ही
किसी को आज़माते हैं ज़रूरत से ज़ियादा ही
समय की बात है जो आंख फेरे थे कभी हमसे
हमें अपना बताते हैं ज़रूरत से ज़ियादा ही
सताते हैं सभी को हुस्न वाले बात सच है ये
मगर हमको सताते हैं ज़रूरत से ज़ियादा ही
नये प्रेमी नहीं हैं हम पुराने हो चुके कब के
मगर अब तक लजाते हैं ज़रूरत से ज़ियादा ही
कभी आता न हमको ध्यान ख़ारों की चुभानों का
कभी जब फूल भाते हैं ज़रूरत से ज़ियादा ही
अजब है रात-भर रेला लगा रहता ख़यालों का
सवेरे ख़्वाब आते हैं ज़रूरत से ज़ियादा ही
परी अब है नहीं तो फिर परी की याद क्यों इतनी
परी को हम भुलाते हैं ज़रूरत से ज़ियादा ही
कपोलों और अधरों की न जातीं ख़ुश्कियां बिल्कुल
नयन आंसू बहाते हैं ज़रूरत से ज़ियादा ही
विधाता हो, मसीहा हो कि हो समराट ही कोई
हमीं आशा लगाते हैं ज़रूरत से ज़ियादा ही
3.
रचो जो उस तमाशे में रहूं मैं
तुम्हारे ही इलाक़े में रहूं मैं
गगन को छोड़कर बन एक दीपक
तुम्हारे द्वार आले में रहूं मैं
टपाटप भींगता जाता बदन है
मगर क्या ज़िद कि छाते में रहूं मैं
तुम्हारा लहलहायेगा मुनाफ़ा
अगर घनघोर घाटे में रहूं मैं
सुना है तुम ख़ुदा बनने लगे हो
इबादत के इरादे में रहूं मैं
ज़माने को सिखाओ तीर-विद्या
ज़माने के निशाने में रहूं मैं
असल अस्तित्व अपना लोप कर लूं
तुम्हारे ही दिखावे में रहूं मैं
नहीं ये भी कि छू लूं जिस्म गोरा
तुम्हारे स्याह साये में रहूं मैं
नुमाइश घर तुम्हारा है रहो तुम
दिगम्बर के अखाड़े में रहूं मैं
4.
जा न पाया कभी बुलाने पर
बंद था द्वार आज जाने पर
अब भटकना अधिक नहीं होगा
जुस्तजू आ गयी थकाने पर
क्या नहीं दूसरा जहां कोई
सोचता हूं अज़ाब आने पर
इक नया ही निज़ाम होगा कल
या यही जो रहा सताने पर
कशमकश चौमुहानियों वाली
मैं खड़ा हूं शराबख़ाने पर
इस तरह तो पहुंच न पाऊंगा
जिस किसी के पता बताने पर
कुछ न छोड़ा भले हसीनों ने
कौन थाने गया लुटाने पर
5.
जब न परिचय जनाब कैसे फिर
दूं परी को गुलाब कैसे फिर
जब उठाने हज़ार बैठे हैं
नाज़ छोड़े शबाब कैसे फिर
ढालने को हसीन साक़ी जब
छोड़ दूं मैं शराब कैसे फिर
प्यार को जब ख़राब मानोगे
हम न होंगे ख़राब कैसे फिर
जब किया है सवाल नज़रों ने
दूं लबों से जवाब कैसे फिर
कौन नाकामयाब दुनिया में
इश्क़ नाकामयाब कैसे फिर
एक-दो क्या हज़ार टूटे हैं
देखती आंख ख़्वाब कैसे फिर
6.
कोई तेरा रहा न … जाने दे
ऐसे आंसू बहा न… जाने दे
अब दवा की तलाश कर कोई
दर्द इतना सहा न… जाने दे
उसने अपना नहीं कहा, समझा
तूने समझा कहा न… जाने दे
प्यार इक ताश का महल होता
था ही ढहना, ढहा न… जाने दे
दिल में मायूसियां न पाल कभी
एक-सा कब जहान… जाने दे
7.
ख़ुद में परिवर्तन देखा है
मैंने जब दर्पन देखा है
संत मना करते हैं जिसको
उसका आकर्षन देखा है
जीवन का रस छलका करता
यौवन का बर्तन देखा है
अब तक नाच रहा मेरा मन
वो दिलकश नर्तन देखा है
क्रीड़ा, भोग-विलास, आराधन
वय-वय का दर्शन देखा है
जब से छूटा मेला-ठेला
तब से बस निर्जन देखा है
8.
ले चलेगी उड़ा कभी न कभी
वो बहेगी हवा कभी न कभी
धूप है और है उमस बेहद
पर घिरेगी घटा कभी न कभी
देखते हो हसीन सूरत जो
चाह देगी जगा कभी न कभी
दो बदन पास-पास आयेंगे
दूर होगी हया कभी न कभी
अश्क़, ग़म, बेकली भला कब तक
प्यार देगा मज़ा कभी न कभी
फ़र्ज़ तुमने सदा निभाया है
तो मिलेगा सिला कभी न कभी
हो गया वो जुदा मगर क्या है
आ मिला है जुदा कभी न कभी
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केशव शरण
जन्म तिथि : 23-08-1960
प्रकाशित कृतियां–
तालाब के पानी में लड़की (कविता संग्रह)
जिधर खुला व्योम होता है (कविता संग्रह)
दर्द के खेत में (ग़ज़ल संग्रह)
कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह)
एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह)
दूरी मिट गयी (कविता संग्रह)
क़दम-क़दम ( चुनी हुई कविताएं )
न संगीत न फूल ( कविता संग्रह)
गगन नीला धरा धानी नहीं है ( ग़ज़ल संग्रह )
कहां अच्छे हमारे दिन ( ग़ज़ल संग्रह )
संपर्क-एस2/564 सिकरौल
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मो. 9415295137
व्हाट्स एप 9415295137
बहुत-बहुत हार्दिक आभार उन सभी मित्रों का जिन्होंने मेरी ग़ज़लों को अपना समय दिया। विशेष रूप से उन सुधी ज्ञात-अज्ञात मित्रों को हार्दिक धन्यवाद जिन्होंने अपनी अमूल्य टिप्पणियों से मेरा हौसला बढ़ाया। आदरणीय जितेंद्र कुमार जी, गायत्री माहेश्वरी जी और अनाम मित्र को साधुवाद और प्यार !
आठ के आठ ग़ज़ल पढ़ गया।केशव शरण जी, आपके शेरों में गज़ब की डेप्थ है; जीवन की अनुभूतियाँ हैं जो मर्म को स्पर्श करती हैं।लाजवाब लिखा है आपने।हार्दिक बधाई।
आठ के आठ ग़ज़ल पढ़ गया।केशव शरण जी, आपके शेरों में गज़ब की डेप्थ है; जीवन की अनुभूतियाँ हैं जो मर्म को स्पर्श करती हैं।लाजवाब लिखा है आपने।हार्दिक बधाई।
बहुत बहुत बधाई मित्रवर ।आपका अपना रंग है ।आपका कथ्य और शिल्प एकदम अलग है जो आपको दूसरों से भिन्न और विशिष्ट बनाता है ।सहजता और स्पष्टता की जितनी प्रशंसा की जाय कम है ।हार्दिक शुभकामना ।
समकालीन विसंगति स्थितियों को गजल मैं बेहतरीन ढंग से उकेरा है.कथ्य और शिल्प दोनों आकर्षक