कथा कहानी की गोष्ठी में विष्णु नागर व सरिता कुमारी का कहानी पाठ
by literaturepoint · Published · Updated











कथा कहानी की एक गोष्ठी गांधी शांति प्रतिष्ठान में दिनांक 23 नवम्बर, 2019 को हुई . इस गोष्ठी में वरिष्ठ कथाकार विष्णु नागर ने अपनी कहानी ‘शैली मेरी,बाकी उसका’ व सरिता कुमारी ने अपनी कहानी‘ज़मीर‘ का पाठ किया.
इन दोनों कहानियों पर बोलते हुए वरिष्ठ कथाकार व ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनंद ने कहा कि ये दोनों कहानियां मार्मिक हैं.विष्णु नागर की कहानी को सुनते हुए रघुवीर सहाय की कविता ‘रामदास’ की याद हो आई जिसमें एक आदमी की सड़क पर हत्या होती है. मैं विष्णु नागर को रघुवीर सहाय से जोड़कर पढ़ता हूं.उन्होंने जाने या अनजाने में ही इस कविता की संवेदना को आगे बढ़ाया है. लेकिन वे अपनी कहानियों में एक अलग तरह से ट्रीटमैंट करते हैं. शहरी जीवन के विस्तार के साथ किसी तरह अमानवीयता बढ़ी है उसे विष्णु नागर सुई चुभो कर बताते है. वह कहानी में रोचकता को बनाए रखते हैं.सरिता कुमारी की कहानी के बारे में मधुसूदन आनंद का मानना था कि यह कहानी संतुष्ट पर्यटकों की कहानी न होकर ऊंचे पदों पर रहकर सामाजिक विश्लेषण करने वाले लोगों की कहानी है. आरिफ़ के जीवन की सच्चाई देखकर उस लड़की के मन में उसके प्रति लगाव पैदा होता है और साथ ही एक तरह का अपराध बोध भी पैदा होता है . वह इस बात का भेद नहीं करती कि आरिफ़ किस जाति का है. गरीब आदमी की खुद्दारी को कहानी में बखूबी उभारा गया है.
इब्बार रब्बी ने कहा कि विष्णु नागर अपने आप को रघुवीर सहाय का वंशज मानते हैं. इन्होंने रघुवीर सहाय की शैली में ही कविताएँ लिखी हैं. विष्णु नागर ईश्वर से पंगा लेते हैं. ईश्वर को लेकर बेहतरीन कहानियां लिखी हैं.सरिता कुमारी की कहानी के बारे में उनका मानना था कि कहानी का आरिफ़ जैसा पात्र एक दम अलग है .राजस्थान लंबे समय से सामंतवाद की जकड़ में रहा वह अलग मूल्य है . दिल्ली ने उन मूल्यों को तोड़ दिया . दिल्ली में घनघोर पूंजीवाद है . इस संदर्भ में यह कहानी एक विशिष्ट कहानी है.
नूर जहीर ने कहा कि मुझे विष्णु नागर की कहानियां इसलिए पसंद आती हैं कि वे ईश्वर से टक्कर लेते रहते हैं और मेरी नास्तिकता का सहारा देते हैं. कहानी में एक तल्खी भरा व्यंग्य है जो हमें अपनी गिरफ्त में ले लेता है. उन्होंने कहा कि यह कहानी बिना मार्क्स की थ्योरी में जाए पूंजीवाद की कहानी है. सरिता कुमारी की कहानी के बारे में नूर जहीर का मानना था कि यह कहानी दिल के बहुत करीब है . पढ़ी लिखी महिलाएँ घूमने अकेले निकलती हैं. यह कहानी इंडिपैंडेट वूमेन की कहानी बन जाती है.उन्होंने कहानी में मुसलमान पात्र को बेचारा बना देने पर सवाल उठाया और कहा कि मुसलमान इस वक्त घिरे हुए हैंउन्हें बेचारा बना देने से हम उनकी किस तरह मदद कर पायेंगे .
इन दोनोंकहानियोंपर बोलते हुए शंकर ने कहा कि दोनों कहानियां बड़े परिदृश्य की कहानियां हैं.विष्णु नागर की कहानीअमानवीयता, संवेदनहीनता की कहानी है. कहानी में छोटे- छोटे प्रसंगों के बीच में से बड़े सवालों की तरफ संकेत किया गया है.कहानी बड़े स्तर पर पाठकों को ले जाती है. कहानी में लोकधर्मिता का आग्रह है .कहानी में व्यंग्य का भाव है. सरिता कुमारी की कहानी के बारे में शंकर का मानना था कि कहानी आरिफ़जैसा उजला व्यक्तिपाठकों के सामने पेश करती है . यह स्त्री पक्षधरता की कहानी है. कहानीकार ने पाठकों के लिए बहुत सा स्पेस छोड़ दिया है ताकि पाठक कहानी का अर्थ स्वयं निकाल सके. .
बली सिंह ने कहा कि विष्णु नागर की कहानी व्यंग्यात्मक शैली की कहानी है.यह कहानी सामान्य सच्चाई को उलट देती है जिससे व्यंग्य पैदा होता है. यह कहानी एक मूल्य की तरफ इशारा करती है . सरिता कुमारी अपनी कहानी में पाठकों को यात्रा करवाती हैं. बली सिंह ने कहानी को उल्लास की कहानी मानते हुए कहा कि यह कहानी पाठकों को स्वकाया से परकाया की ओर ले जाती है.
सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि दोनों कहानियों में संकेत के रूप में सिस्टम उभर कर आया है. इस सिस्टम द्वारा पैदा किया गया बाजारवाद आया है जहां खर्चे की कोई सीमा नहीं है.
हरियश राय ने कहा कि विष्णु नागर परसाई की परम्परा के व्यंग्य कार हैं.इस कहानी में करुणा की एक धारा लगातार विद्यमान रहती है और यह कहानी हमें एक बेहतर मनुष्य बनने की प्रेरणा देती है. विष्णु नागर ने छोटे – छोटे संदर्भों के सहारे पाठकों की संवेदना को गहराई से उद्वेलित किया है . सरिता कुमारी की कहानी मानवीयता की कहानी है. कहानी की पात्र मानवीयता के पक्ष में खडी है .
सिनीवाली शर्मा का मानना था कि दोनों कहानियां हमें यह बताने की कोशिश करती हैं कि हममें कितनी मनुष्यता बाकी रह गई है .
गोष्ठी में हुई चर्चा पर बोलते हुए विष्णु नागर ने कहा कि मैंने कहानी लिखना छोड़ दिया था पर एक अर्से बाद मैंने कहानी लिखी है. इस कहानी को लिखते समय एक अजीब तरह की तकलीफ मैंने महसूस की है . मैं ज्यादातर व्यंग्य व कविताएँ ही लिखता हूं. सरिता कुमारी ने कहा कि मैंने अपनी कहानी में आरिफ़ को एक मुस्लिम पात्र के रुप में नहीं एक मनुष्य के रुप में ही चित्रित किया है .
गोष्ठी में विवेकानंद सहित इप्टा के कई साथी व अन्य लोग मौजूद थे .
गोष्ठी का संचालन व संयोजन हरियश राय ने किया .
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