केशव शरण की 5 ग़ज़लें
by literaturepoint ·

प्रकाशित कृतियां-
तालाब के पानी में लड़की (कविता संग्रह), जिधर खुला व्योम होता है (कविता संग्रह), दर्द के खेत में (ग़ज़ल संग्रह), कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह), एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह), दूरी मिट गयी (कविता संग्रह), क़दम-क़दम ( चुनी हुई कविताएं ) , न संगीत न फूल ( कविता संग्रह), गगन नीला धरा धानी नहीं है ( ग़ज़ल संग्रह )
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एस2/564 सिकरौल, वाराणसी 221002, मो. 9415295137
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एक
धार पर धार मैं कहां जाऊं
आर या पार मैं कहां जाऊं
जागती आंख में लिए सपने
सुप्त संसार मैं कहां जाऊं
यार की मर्ज़ियां जहां जाये
यार की कार मैं कहां जाऊं
दूसरा पांव काम करता था
िगड़ गया ख़ार मैं कहां जाऊं
एक अंधा कुआं क़दम पीछे
सामने ग़ार मैं कहां जाऊं
प्यास गहरी थकान गहरी है
दूर तक क्षार मैं कहां जाऊं
मंज़िलो! ये मलाल होता है
है कहां प्यार मैं कहां जाऊं
दो
अगर तुम हो, भले ही तुम हवा हो
रहो तुम ही मगर दुनिया दफ़ा हो
तुम्हारे ही दिए हैं दर्द सारे
मगर हर दर्द की तुम ही दवा हो
तुम्हीं से जान पाये मौत के ग़म
तुम्हीं जो ज़िंदगी-भर का मज़ा हो
सज़ा फिर और कोई मांगता क्या
विरह ही जब मुहब्बत की सज़ा हो
अकेले भर रहा हूं आह गोया
यही अंतिम समय का क़ायदा हो
निभाकर इस तरह जाना सनम का
सनम-सा फिर न कोई दूसरा हो
मुझे अपनी ख़बर से कुछ न मतलब
मुझे केवल तुम्हारा दर पता हो
तीन
चहेती, शब, जवानी और क्या है
गई आकर कहानी और क्या है
दिलाते ज़ख़्म भी पहचान जग में
बदन, रुख़ पर निशानी और क्या है
प्रशंसा की नज़र से की प्रशंसा
निकालो जो मआनी और क्या है
जिसे हम जी रहे या चाहते हैं
बता दो ज़िंदगानी और क्या है
वही है दीप जो हर ले अंधेरा
बुझा दे प्यास, पानी और क्या है
फ़सल भी ख़्वाब की तैयार समझो
जुन्हाई है न! चानी और क्या है
मधुर हर राग में है इक बराबर
बजी बंशी कि बानी और क्या है
चार
फ़ज़ा में वायरस फैले फ़ज़ा में धूल छायी है
हवा गतिशील है लेकिन हवा में धूल छायी है
ढहाये जा चुके ढांचे पुराने इस नगर के सब
नये निर्माण के पहले ख़ला में धूल छायी है
दिशा बदलाव की थी तो दशा उत्थान की भी थी
दिशा दुर्गंध देती है दशा में धूल छायी है
समझ में आ रहा है अब मुहब्बत में लुटाकर दिल
अंधेरा वायदों में है वफ़ा में धूल छायी है
न जाने वक़्त कैसा है हमारी ज़िन्दगानी में
सड़क पर रक्त फैला है सभा में धूल छायी है
पांच
मिले न दूत कि उस पार की ख़बर क्या है
अनेक वर्ष गये यार की ख़बर क्या है
न एक रोज़ मुझे छोड़ता अकेला था
उसी अज़ीम वफ़ादार की ख़बर क्या है
अजब रहस्य-भरे रूप-रंग वाले जब
अतीव सूक्ष्म निराकार की ख़बर क्या है
अबाध अश्क़ बहे जा रहे हमारे हैं
तुम्हें न दर्द तुम्हें प्यार की ख़बर क्या है
शुमार आज उन्हीं प्रेम-पागलों में हम
जिन्हें पता न कि संसार की ख़बर क्या है