केशव शरण की 15 कविताएं
क्या कहूंगा
क्या मैं कह सकूंगा
मालिक ने अच्छा नहीं किया
अगर किसी ने
मेरे सामने माइक कर दिया
क्या मैं भी वही कहूंगा
जो सभी कह रहे हैं
बावजूद सब दुर्दशा के
जो वे सह रहे हैं
और मैं भी
क्या मैं भी यही कहूंगा
कि आगे बेहतरीन परिवर्तन होगा
मालिक की हालिया कठोर नीतियों से
भविष्य में हमारा सुखमय,सरल जीवन होगा
फीलगुड
जो बैरकों में बंद हैं
फीलगुड
वे भी करते होंगे
कि वे यमराज के नर्क में नहीं हैं
जैसे हम
गुड फील करते हैं
कि हम खुली जेल में हैं
इतिहास से गिला
इतिहास से
विश्व-नागरिकों को
एक ही गिला है
जो रोम के नहीं थे
जो रोम के नहीं हैं
नीरो उन्हें भी मिला है
गिरगिटान और इंसान
गिरगिटान
इंसान नहीं हो सकता
यह गिरगिटान का गौरव है
कि दैन्यता ?
इंसान
गिरगिटान हो जाता है
यह इंसान की दैन्यता है
कि गौरव ?
असमंजस में डाल देते हैं
नेता
साहब
बाबू
बुद्धिजीवी !
कवि और किसान
लहलहाते खेत
देख
ख़ुश है कवि
कल्पनाओं और सौन्दर्यानुभूति सहित,
ख़ुश है किसान भी
लेकिन आशंकारहित
नहीं है उसकी ख़ुशी,
कवि इसे क्या
समझ रहा है?
रैली के बाद
जब तक प्रधानमंत्री निकल नहीं गये
हम रुके रहे,
चलने को हुए
तो जाम में फंस गए
जब तक हम अगले चौराहे तक पहुंचे
प्रधानमंत्री दिल्ली पहुंच चुके थे
और हमें घर पहुंचते-पहुंचते
वे विदेशी मुल्क की राजधानी में थे
शहंशाह की तरह हवाई जहाज़ की सीढियां उतरते हुए
टी वी स्क्रीन पर
गेहूं का खेत
वह एक सुन्दर चित्र है
मैं उसे एक छोटे-से कैनवास पर देख रहा हूँ
गाढ़े हरे रंग में
दृष्टि को खींचता
वह एक सुन्दर कविता है
दूध-भरे दानों के अक्षरों में
धरती के प्रेमिल भावों से
हृदय को सींचता
वह श्रम का सौन्दर्यशास्त्र है
उसमें आखेट युग के पश्चात
सभ्यता के विकास का इतिहास
आज भी बरक़रार है
उसमें अर्थशास्त्र का
क्षैतिज विस्तार है
और अध्यात्म है उसमें
अन्नमेव ब्रह्म के रूप में
सांसारिक मूल्यों के समेत
जाड़े की धूप में
वह एक गेहूं का खेत
वह दुनिया वह शाम
चंद पल
मेरे पास
और बचे होते
तो मैं वह दुनिया देख लेता
ओर से छोर तक
जिसकी ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर
ख़ूब बड़े-बड़े पेड़ फब रहे थे
हरी और सूखी घासों पर
पत्ते उड़ रहे थे
चिड़ियां चहक रही थीं डालों पर
और झाड़ियों में वे फूल खिले थे
जिनके नाम मैं नहीं जानता था
बस जानता था उस छोर पर
एक नदी बहती है
मैं ओर पर था
और वह अँधेरे में जा रही थी
ओर से छोर तक
यह मुझे खेद देता
सर्दियों की तकलीफ़ें
गर्मियों की तकलीफ़ें
याद करने से
कम नहीं होंगी
सर्दियों की तकलीफ़ें
इसलिए गर्मियों में जो अच्छा है
उसे याद करता हूँ
और अपने को
उम्मीदों से भरता हूँ
यूं सर्दियों में जो अच्छा है
उसे भी तो जिया ही न
अगहनी रंग में
वह फिर से लौटने वाला है
फागुनी उमंग में
पेड़ जानता है
पेड़ ने
पत्तियां दीं
अपने को खंखाड़कर
धूप आयी
उसकी टहनियों के फोफरों से
और देह ने शीत से राहत पायी
रात पत्तियों से हमने आग जलायी
सूर्य उत्तरायण हुए
शिवरात्रि बीती
पेड़ ने जान लिया
अब हमें क्या चाहिये
पेड़ ने जान लिया सरासर
छांव पहले नम्बर पर
फिर फूल
फिर फल
उसे विश्वास है
पिंजरे में
पंख फड़फड़ाने का
क्या मतलब हो सकता है
मगर पंछी पंख फड़फड़ाता है
इससे वह उड़ नहीं जाता है
वह वही रहता है
पिंजरे में
हरी डालियां
निर्मल जल
और नीला निःसीम आकाश
वह छुयेगा एक दिन
वह उड़ेगा एक दिन
उसे विश्वास है
जिसके लिए यह दैनिक अभ्यास है
विसर्जन और सृजन
पेड़ देखो
पेड़ से जुड़ा
जो शून्य है
वो देखो
बहुत-कुछ देखते-देखते
अगर थक गए हो
मौन की चहक सुनो
अगर थक गए हो
बहुत-कुछ सुनते-सुनते
बहुत-कुछ सोचते-सोचते
अगर थक गए हो
ध्यानस्थ हो जाओ शून्य में
विसर्जन शून्य में ही होता है
शून्य से ही होता है
नवसृजन
जिसका रूप कुछ हो
गुण पेड़ सदृश्य ही रहता
कवि केशव शरण कहता
अगला मुद्दा और चरण
आनंद और स्वास्थ्य के लिए
थकना क्यों पड़े किसी को
अगर पास हों स्वच्छ जलाशय
साफ़ हवा, पेड़, घास-मिट्टी के दृश्य
और खुला आकाश
विकास का अगला मुद्दा
और चरण
यही होना चाहिये
परिदृश्य
कहीं मरघटी सन्नाटा
ज़बरदस्त रूप से खल रहा है
कहीं भयंकर मार-काट मची है
और भीषण कोलाहल रहा है
ऐसा ही
पूरा परिदृश्य चल रहा है
जिसमें अवश्य यहां-वहां
उद्दीपक संगीत
और उत्तेजक नृत्य चल रहा है
मदमाते गीतों के साथ
जिनमें घूम-फिरकर एक ही बात
कि दुनिया आनंद के लिए है।
इस जंगल में
यह घास
नरम मीठी घास
मेरे लिए है
हिरन सोचता है
और ख़ुश होता है
वह किसके लिए है
वह नहीं सोचता
वह सोचे या नहीं सोचे
थोड़ी दूरी पर
बाघ सोचता है
और ख़ुश होता है
इस जंगल में
कोई नहीं रोता है
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तालाब के पानी में लड़की (कविता संग्रह)
जिधर खुला व्योम होता है (कविता संग्रह)
दर्द के खेत में (ग़ज़ल संग्रह)
कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह)
एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह)
दूरी मिट गयी (कविता संग्रह)
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