माधव कौशिक की 5 ग़ज़लें
by literaturepoint · Published · Updated
चर्चित किताब

माधव कौशिक का नया ग़ज़ल संग्रह
पानी में तहरीर नयी
किताबगंज प्रकाशन
मूल्य 195 रुपए
एक
सबका क़िस्सा ख़ाली हाथ
सारी दुनिया ख़ाली हाथ
इक मुद्दत से बैठा हूं
तनहा, टूटा, ख़ाली हाथ
वो बेचारा क्या देता
वह भी खुद था ख़ाली हाथ
सब कुछ होते हुए भी मैं
घर से भागा ख़ाली हाथ
हथियारों से लैस ज़मीन
अर्श अकेला ख़ाली हाथ
लुटने को तैयार नगर
पर मैं लौटा ख़ाली हाथ
ढूंढ रहा हूं मेले में
महंगी गुड़िया, ख़ाली हाथ
दो
चट्टानों के जिगर से जल तो निकले
हमारी मुश्किलों का हल तो निकले
मैं तो तुमसे प्यार करना चाहता हूं
ये रिश्तों की फंसी सांकल तो निकले
शहर को चीर कर देखो तो यारो
शहर की कोख से जंगल तो निकले
बिछड़ने का सताए ग़म तुम्हें भी
तुम्हारी आंख से काजल तो निकले
मैं तपती धूप में मुरझा रहा हूं
किसी कोने से अब बादल तो निकले
चलूंगा तेज़ से भी तेज़ लेकिन
मेरे पांवों से यह दलदल तो निकले
तीन
छीन कर हमसे हमारी दास्तां ले जाएगा
वक़्त का किसको पता है अब कहां ले जाएगा
अपनी सांसों में सुलगती आंधियां ले जाएगा
सबसे पहले आग की ख़बरें धुआं ले जाएगा
आने वाली नस्ल के आने से पहले ही कोई
काट कर सारे ज़माने की ज़ुबां ले जाएगा
गर ज़मीं को बांट देने की हवस बढ़ती रही
जंग कंधों पर उठाकर आसमां ले जाएगा
ख़ौफ़ की अंधी-अंधेरी घाटियों से भी परे
आदमी को आदमी जाने कहां ले जाएगा।
चार
हौसला हाशिये ने तोड़ दिया
जिस्म को ज़ाविये ने तोड़ दिया
गांव के गांव हो गए ख़ाली
एक को दूसरे ने तोड़ दिया
कोई किस पर यक़ीं करे तो कितना
अक़्स को आइने ने तोड़ दिया
अब नहीं राब्ता कोई उनसे
दिल तो शिकवे-गिले ने तोड़ दिया
कैसे पूरी करूं ग़ज़ल माधव
शेर को क़ाफ़िये ने तोड़ दिया।
पांच
कर दिया दिल से दिल जुदा किसने
आग को आज दी हवा किसने
टूटे खंडहर की चारदीवारी
नाम मेरा वहां लिखा किसने
मैं जहां था, वहीं पे क़ायम हूं
फ़ासला इतना तय किया किसने
कोई मुंसिफ़ नहीं अदालत में
फिर किया अपना फ़ैसला किसने
जिससे सारा जहान रौशन था
वो दिया भी बुझा दिया किसने।
पानी पर तहरीर नयी से साभार