नवनीत शर्मा की पांच ग़ज़लें
एक
हमी तक टल गया आना हमारा
हुआ है ज़ख्म कुछ गहरा हमारा
बहुत शिद्दत से कोई याद चमकी
घुले हम घुल गया साया हमारा
यही पहले से था लहजा हमारा
तअल्लुक़ इश्क़ का तो ग़ैब से है
मियां सच्चा था अंदाज़ा हमारा
किसी को भेद क्या मिलता हमारा
पहले ताे था मचान मुश्किल में
अब है पुख़्ता मकान मुश्किल में
जो सुखी हैं, उन्हें गरज क्या है
लोग करते हैं दान मुश्किल में
धुंध गायब, हवा भी है खा़मोश
अब है मेरी उड़ान मुश्किल में
क़हर सा रोज़ टूट पड़ता है
कल ही थी आनबान मुश्किल में
धूप ख़ेमे लगा के बैठ गई
सब्र धरती का आज़माया गया
आ गया आसमान मुश्किल में
इक दिया आंधियों से जूझ गया
आज है ख़ानदान म़ुश्किल में
बात सच ही कही पियादे ने
क्यों हैं आलाकमान मुश्किल में
मैं अपने आप को भी नागवार लगता हूं
हरेक झूठ पे तरे यक़ीन है मुझको
बता तो कैसे तुझे हाेशियार लगता हूं
ये तीरगी है समझती है मुझको तीरंदाज़
वो रोशनी है जिसे खा़कसार लगता हूं
वो शोर सुनते हैं बस खा़मुशी नहीं सुनते
मैं लोकतंत्र का उजड़ा दयार लगता हूं
मैं देखता ही तो आया हूं सब खा़मोशी से
इसीलिए तो सभी को ग़ुबार लगता हूं
तुम एक पूरी सदी हो मगर उदास भी हो
मैं एक लम्हा सही खुशगवार लगता हूं
भला हो नींद का, खा़बों में सल्तनत है मेरी
मैं जागता हूं तो फिर बेवकार लगता हूं
गुनाह नेकियां बदनामियां शराफत सब्र
अज़ल से खुद ही मैं खुद पर सवार लगता हूं
कभी ये शहर का मंज़र उदास करता है
रहें जो घर में तो फिर घर उदास करता है
ये एक रीढ़ हमें रोकती है झुकने से
ये एक झुकता हुआ सर उदास करता है
हमेशा हंस के मिलेगा मगर यकीन करो
सियासतों का पयम्बर उदास करता है
मैं चाहता हूँ मेरी हर ख़ुशी मिले सबको
यही उसूल तो अक्सर उदास करता है
जगाने वाला था सबको उसे सुला ही दिया
जब आये याद वो सफ़दर उदास करता है
गिला नहीं है हमें कोई नाउम्मीदी से
हमें ये आस का लश्कर उदास करता है
हवा में तैरती चिड़िया पे नाज़ है मुझको
ज़मीं पे गिरता हुआ पर उदास करता है
बुआई खाबों की रोज़ाना करता रहता हूँ
दिल ऐसा रकबा है बंजर, उदास करता है
वही है छत का उखड़ना, फ़सील का ढहना
यही बवाल है घर घर, उदास करता है
उसी से मिलने की उठती है क्यों तलब नवनीत
वो एक शख्स जो मिल कर उदास करता है
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सारी ग़ज़ले शानदार है।नवनीत शर्मा की कसी हुई शायरी के लिये बधाई के पात्र हैं।