नितेश मिश्र की कविताएं
- सुविधाएं
कहीं भी टिकाये रखा जा सकता है
जीवन
पैर
कहीं भी नहीं टिकाया जा सकता
रोया जा सकता है
थोड़ा-थोड़ा पूरा जीवन
पूरा जीवन
एक साथ नहीं रोया जा सकता
बढ़ता जाता है समय
बैठती जाती है उम्र
उम्र धकेली नहीं जा सकती
समय बाँधा नहीं जा सकता।
- जीवन
जीने की एक पूरी प्रक्रिया
जीने के लिए
थी ही नहीं
चलते रहने के तमाम
जद्दोजहद
नौकरी और पैसे तक जाते थे
जो साथ रहे थे
उनकी गर्दन टेढ़ी हो चुकी है
प्रेम करने का सबसे आसान तरीका
प्रेम को उपेक्षित करना रहा
जितना दुख आवंटित हुआ जीवन में
जीवन के बाद भी बचा रह जाएगा!
- अभाव
जितना पैसा मिलता था
मेशा कम पड़ जाता था.
पहली तारीख़ को मकान मालिक आता था
एक हिस्सा ले जाता था
मकान मालिक के पास बहुत पैसा था
और मेरी कई गालियाँ भी
एक हिस्सा प्रेमिका ले जाती थी
अपने सौंदर्य के लिए
उसके पास बहुत सुंदरता थी
बहुत सुंदरता उसने मेरे पैसे से ख़रीदी थी
जितना खाना मिलता था
हमेशा कम पड़ जाता था
दरवाज़े से कुत्ता आता था
रोटी छीन कर भाग जाता था
कुत्ते के पास अपना कुछ नहीं था
छीनी हुईं बहुत सी हड्डियाँ और रोटियां थीं
मेरे पास
जो भी था
जितना भी था
बहुत कम रहा.
बहुत ज्यादा तो
मकान मालिक, प्रेमिका और कुत्ते के पास है.
—-
नितेश मिश्र
|दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययनरत