प्रद्युम्न कुमार सिंह की 5 कविताएं
by literaturepoint ·

गुलमोहर का फूलना
गुलमोहर का फूलना
पानी सी
पानी की लड़की है
बहुत काबिल है
हारकर भी नहीं हारती
जीतकर भी नहीं थकती
उन्माद के आगे हुंकार भरती
तोड़ने को अग्रसर रहती
चिरकारा
यह पानी की लड़की है
पानी सी रहती
आये राह अगर कोई रोड़ा
रूख मोड़ने का प्रयास यह करती
न टूटती है न रुठती है
लगी रहती सदा
पानी के संग
पानी सी सुदृढ़
उत्कंठा
मासूकाओं सी
मासूम होती हैं
उत्कंठाएं
बना लेती हैं
आसानी से
मस्तिष्क प्रमस्तिष्क के
कोने में जगह
और आड़ोलित करतीं हैं
अन्तः से वाह्य तक
प्रश्न उठाते प्रश्नों को
बेदखल कर देना चाहती हैं
सीमाओं सीमा से
और प्रदान करती हैं
उठने की क्षमताएं
इसके थकन से पूर्व
क्योंकि मासूकाओं सी
मासूम होती हैं
उत्कंठाएं
जिन्हें रोकना खुद को
रोकने जैसा होता है
उन्हें मालूम है
उन्हें मालूम है
शिक्षित और शिक्षा की बारीकियां
इसीलिए वे निरंतर करते हैं
उनमें कटौती
जिन्हें समझना
सहज नहीं होता
जैसे सहज रूप से
नहीं समझी जा सकती
कुंजड़े की डांडी
मारने की कला
बनिये के नफ़े की गणित
जालसाज़ का जाली वक्तव्य
मित्रता के पीछे छिपाया गया
शत्रुता का खंजर
वाग्जाल के पीछे
छिपी नृशंसता
सौम्यता के पीछे खड़ी
अराजकता
वैसे ही आसानी से
नहीं समझी जा सकती
शिक्षा में खर्च कटौती की
असली वजह
काश तुम जिन्दा होते
बापू !
काश तुम जिन्दा होते
देखते नुमाइंदों के
अपने कारनामे
झूठ फरेब के संग
तुमको भी ठगते
गाते भक्त जनो तेनो कहियो
पीर पराई जाय
गाते गाते रुक रुक
तुझको देख
मन ही मन वे मुस्काते
तुझको ही तेरे अखाड़े
दिखलाते
खुद के दांव पेंच लगाते
बापू !
काश तुम जिन्दा होते
नुमाइंदों के अपने
कारनामे देखते
भांति भांति के वे
स्वांग रचाते
तुमको ही तुमसे
लड़वाते
शान्ति अहिंसा के तुम्हारे
अस्त्र छुड़ाते
खुद ही सन्त महान
कहाते
छीनने की हर सम्भव
कोशिश करते
लाठी लकुटि चरखा
चुराते
बापू !
काश तुम जिन्दा होते
नुमाइंदों के अपने
कारनामे देखते
कड़वी लौकी गंगा
नहलाते
प्रीति रीति के भोज कराते
देकर अमृत भोज का नाम
तुमको भी विष के
कौर खिलाते
मक्कारी चापलूसी
उनके दूसरे नाम
खुद से खुद की
तारीफ करवाते
बापू !
काश तुम जिन्दा होते