संजीव ठाकुर की पांच बाल-कविताएं
रोज रात
रोज रात घर के बाहर
भौंका करते हैं कुत्ते
कहते हैं पहनेंगे हम भी
तेरे जैसे जूते
ठंड सताती है हमको
पहरेदारी करने में
तुम्हें मजा तो आता होगा
घर के भीतर रहने में ?
रोज रात घर के भीतर
चूँ –चूँ करते हैं चूहे
कहते हैं खाएँगे हम भी
मीठे मालपूए
दाँत दुखते हैं भाई
सूखी रोटी खाने में
तुम्हें मजा तो आता होगा
छप्पन भोग लगाने में ?
तोता
हरे रंग का तोता
चने भिंगोए खाता
तीखी मिर्चें खाकर
बिल्कुल उफ न करता !
हरे रंग का तोता
मीठू- मीठू करता
बात कोई सुन ले तो
दुहराता रहता ।
हरे रंग का तोता
बैठे –बैठे सोता
कभी खुले पिंजरा तो
जल्दी से उड़ जाता ।
दूध –मलाई खाकर आई
दूध –मलाई खाकर आई बिल्ली रानी
पूछा बिल्ले ने ,बोलो था कितना पानी ?
बिल्ली बोली ,क्या बतलाऊँ ?कितना घटिया दूध था ?
सुबह –सुबह ही ऑफ हो गया ,कितना बढ़िया मूड था !
पापी ग्वाला दूध बेचता या पानी ही पानी ?
धरम –करम की इस दुनिया में बची न एक कहानी !
ऐसा सबक सिखाऊँगी कि याद रखेगा ग्वाला
तुम भी साथ चलोगे न ? जल्दी बोलो लाला !
दुम उठाकर बिल्ला बिल्ली के पीछे भागा
उछल –कूद कर मटका फोड़ा ,और जल्दी से भागा ।
लगा सोचने आकर ग्वाला , कैसे फूटा मटका ?
देख वहीं कोने में बिल्ली माथा उसका ठनका !
एक लात खाकर तो बिल्ली भागी घर से बाहर
सिर पर रखकर हाथ बेचारा ग्वाला बैठा अंदर !
सांता जैसे टीचर होते
कहा आज सांता ने ,बच्चो ! चलो चलें स्कूल !
सांता जी को हुआ आज क्या ? बना रहे क्यों फूल ?
क्रिसमस का त्योहार है अंकल ! आज हमारी छुट्टी
दिन भर खेलेंगे ,कूदेंगे ,आज पढ़ाई से कुट्टी !
हाँ ,बच्चो ! मैं आज तभी तो कहता चलने को स्कूल
पढ़ने के बदले खेलोगे और रहोगे कूल !
रोज –रोज तो पढ़ –पढ़कर होते रहते हो बोर
चलो ,आज स्कूल के कमरों में कर लेना शोर !
जमा हुए सब बच्चे ,बीच में सांता टोपी पहने
किस्से हुए ,टॉफियाँ बांटीं ,मस्ती के क्या कहने ?
ऐसे ही होते स्कूल तो सोचो कैसा होता ?
सांता जैसे टीचर होते , रोज बड़ा दिन होता !
गर्मी आई
गर्मी आई ,गर्मी आई
घर के अंदर रहना भाई ।
गर्मी आई ,गर्मी आई
छाता लेकर निकलो भाई ।
गर्मी आई ,गर्मी आई
पके हुए खरबूजे लाई ।
गर्मी आई ,गर्मी आई
सूखे ताल –तलैया भाई ।