दुनिया को रौशन करने वाली एक ‘चरित्रहीन’ लड़की
by literaturepoint · Published · Updated

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द लास्ट कोच

हर शनिवार
आज उससे मिलने जाते वक्त खुद का चरित्र आईने में निहार रहा हूं। कितना आसान होता है न, किसी को चरित्रहीन कहना। खास तौर से जब वह खुले विचारों की हो और करिअर बनाने के लिए शादी करने से लगातार इनकार कर रही हो। आधुनिक कपड़े पहनने वाली और खिलखिला कर हंस पड़ने वाली उस जीवट युवती से मिलने जा रहा हूं, जिसे अनायास ही चरित्रहीन करार दे दिया गया। यह जाने बिना कि आखिर उसके साथ हुआ क्या था। सच में कितना आसान होता है न किसी लड़की को ‘चरित्रहीन’ कहना!
तो आईने में खुद को कई बार निहार चुका हूं। चार बार शर्ट और इतनी ही बार कोट बदल चुका हूं। आखिर मैं उमंग से भरी एक युवती से मिलने जा रहा हूं। जो डाक्टर है दिल की। अगर आप इसे गलत अर्थ में ले रहे हैं, तो मुझे भी चरित्रहीन कह सकते हैं। पूछ सकते हैं कि मेरी उससे मुलाकात का मतलब क्या है? क्या एक अविवाहित युवती किसी पुरुष की मित्र नहीं हो सकती? अगर कोई इसके लिए उसे ‘चरित्रहीन’ कहता हैं, तो यकीकन मैं भी चरित्रहीन हूं। और वह समाज भी, जो लिबरल और सिंगल वुमन को संदेह की नजरों से देखता है।
उसका मैसेज आ चुका है-‘सागर रत्ना। ठीक एक बजे। स्टेशन से बाहर निकल कर ऑटो कर लीजिएगा।’ मैंने जवाब दिया- ‘ओके। तुम पहुंचो। मैं आ रहा हूं।’
राजीव चौक के लिए मुझे मेट्रो मिल गई है। लास्ट कोच हमेशा की तरह सुकून भरा है। मेरे बगल में बैठे सज्जन अंग्रेजी अखबार पढ़ रहे हैं। उन्होंने जैसे ही पेज पलटा, मेरी नजर एक समाचार पर टिक गई है- ‘अपरंच स्वीप्स नेशनल अवार्ड।’ अपरंच यानी डॉ. उज्ज्वला का एनजीओ। एक ऐसा स्वयंसेवी संगठन जो ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम कर रहा है। मैं उसे कॉल कर रहा हूं, मगर संपर्क नहीं हो रहा।
तभी उज्ज्वला का मैसेज- ‘कॉल कर रहे थे आप? कहां पहुंचे?’ मैंने जवाब टाइप किया- ‘हां, मगर फोन लग ही नहीं रहा। दरअसल, एक गुड न्यूज देनी थी तुम्हें। अब कॉफी के बाद लंच भी करेंगे और मिठाई भी खाएंगे।’ इस पर उज्ज्वला का इसरार भरा मैसेज- ‘बताइए न, छुपा क्यों रहे हैं गुड न्यूज?’ ‘…….नहीं अभी नहीं। आकर बताता हूं।’ मैंने जवाब दिया।
‘अच्छा तो जल्दी पहुंचिए। मैं इंतजार कर रही हूं आपका।’ उसका मैसेज मोबाइल के स्क्रीन पर चमका।
सोच रहा हूं कि लड़कियों और महिलाओं में स्वाभिमान से जीने का और स्वावलंबी बनने का पाठ पढ़ा रही डॉ. उज्ज्वला ‘चरित्रहीन’ कैसे हो सकती है? एक हॉर्ट सर्जन जो मरीजों के दिलों की सलामती के लिए आपरेशन थिएटर में घंटों जद्दोजहद करती रहती हो, उसे समाज कैसे ‘कैरेक्टरलेस’ कह सकता है? वह बेहद भावुक है। उसका दिल तो भूखे और कमजोर पिल्ले तक के लिए द्रवित हो जाता है। मैंने देखा है उसे। उस दिन मेडिकल बुक की दुकान के बाहर टाट-पट्टी पर बैठे ठंड से ठिठुर रहे मासूम पिल्ले को एक बच्चे की मानिंद अपने हाथ से वह बिस्कुट खिलाती रही।
जो दूसरों के दुख से पिघल जाती हो। जो समाज में बदलाव लाने के लिए आधी दुनिया का सहारा बन रही हो, वह चरित्रहीन कैसे हो सकती है? यह सवाल मेरे दिल को बार-बार चाक किए दे रहा है।
मेरे सोचने के इस क्रम में कई स्टेशन निकल चुके हैं। एक ‘चरित्रहीन लड़की’ मेरा इंतजार कर रही होगी रेस्तरां में। उद्घोषणा हो रही है-अगला स्टेशन राजीव चौक है। मैं सीट से उठ गया हूं। उज्ज्वला को मैंने मैसेज किया- डॉक्टर, मैं राजीव चौक पहुंचने ही वाला हूं।
प्लेटफार्म से निकल कर सीढ़ियां चढ़ रहा हूं। बीप की ध्वनि ने एक बार फिर मेरा ध्यान खींचा है। उज्ज्वला का ही मैसेज है- जल्दी आइए। सागर रत्ना में बैठी हूं। इंतजार कर रही हूं। ……..मैं गेट नंबर दो से निकल रहा हूं। स्टेशन से बाहर आकर मैंने उज्ज्वला की बात मान ली है। ऑटो वाले ने मुझे चंद ही मिनटों में सागर रत्ना के सामने पहुंचा दिया है।
…….रेस्तरां में सबसे कोने की सीट पर बैठी उज्ज्वला ने हाथ हिलाते हुए अभिवादन किया है। मैं उसकी ओर बढ़ रहा हूं, जहां मुझे बैठना है देर तक। सागररत्ना में एक ‘चरित्रहीन युवती’ के साथ बिताई यह दोपहर मुझे हमेशा याद रहेगी।
मेरे आने से पहले उज्ज्वला दो कप कॉफी का आर्डर दे चुकी है।
‘ तो आप मिल रहे हैं एक चरित्रहीन लड़की से। यानी डॉ. उज्ज्वला से।’ यह कहते हुए वह खिलखिला कर हंस पड़ी है।
‘पागल हो तुम। ऐसा नहीं कहते।’ मैंने उसे टोका तो उसने कहा-‘नहीं ऐसा ही है। लोग मुझे चरित्रहीन कहते हैं। यह समाज कहता है, जिसमें अपनी शक्ल छिपाए बैठा हैवान निरीह स्त्री का आखेट करता है। जब वह सफल नहीं होता, तो उसे चरित्रहीन करार देता है।’ यह कहते हुए उज्ज्वला की आंखें छलक उठी हैं। मैंने उसके आवेग को शांत करने के लिए कहा- ‘बी कूल….. डॉक्टर। क्या हो गया है तुम्हें। कह दो आज जो कहना है। दिल का बोझ हल्का कर लो।’
‘हां जरूर कहूंगी। ……… आप लेखक हैं। इस समाज की मानसिकता का पोस्टमार्टम करते हैं। मैं दिल की डाक्टर हूं। समाज की निर्ममता दिल में नहीं, दिमाग में पाती हूं। जहर वहीं भरा है।’ उज्ज्वला ने कहा। …..
‘इस समाज ने मुझे पहली बार चरित्रहीन तब कहा, जब मैंने पढ़ाई जारी रखने के लिए शादी करने से मना कर दिया। रिश्तेदारों ने मेरे पिता के मन में यह बात भर दी कि आपकी बेटी चरित्रहीन है। तभी वह मना कर रही है। बताइए क्या गुजरी होगी मेरे भोले-भाले पिता पर?’
उज्ज्वला के चेहरे की अटल मुस्कान कहीं दूर ढलते हुए सूरज में गुम हो रही है। मैं उसकी पीड़ा को आत्मसात कर रहा हूं। समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूं उसे? कैसे संभालूं उसे? मगर वह तो स्वयंसिद्धा है। उसके संकल्प के आगे तो चट्टान भी टूट कर बिखर जाए।
वेटर दो कप कॉफी रख गया है। मैं उज्ज्वला के दिल की गिरह आज खुल जाने देना चाहता हूं। उसके चेहरे पर एक सफल नारी का ओज है, तो आक्रोश की लाली भी। उसकी बात सुनते हुए मैंने कॉफी की पहली घूंट जैसे ही ली, उसके स्वाद के साथ ऐसा लगा कि इस समाज का मिजाज कितना कड़वा हो गया है। उज्ज्वला ने मेरे चेहरे से मन को भांप लिया- ‘कॉफी कड़वी लग रही है न आपको? लाइए चीनी मिला देती हूं।’
वह चम्मच से मिठास घोलते हुए एक और कड़वी बात बताने लगी- ‘जानते हैं, जब मैं दिल्ली में अकेले रह कर मास्टर आफ सर्जरी की तैयारी कर रही थी, तब भी रिश्तेदारों और आस-पड़ोस के लोगों ने मेरे पिता से यही कहा कि एक जवान लड़की अकेले इतने बड़े शहर में कैसे सरवाइव कर सकती है। जरूर वह ‘चरित्रहीन’ होगी।’ कॉफी में चीनी मिलाते हुए उसके हाथ कांप रहे हैं। मैंने उसे रोका-‘बस उज्ज्वला यह मीठा हो गया होगा।’
मैं कॉफी पीते हुए खुद में गुम हो गया हूं। क्या मैं एक ‘चरित्रहीन लड़की’ के सामने बैठा हूं? या कि एक ऐसे समाज में जी रहा हूं जो खुद ही चरित्रहीन है। जो अकेली लड़की के अंतस को अपने कड़वे बोल से और अपनी नजरों की किरचियों से लहूलुहान कर देता है। एक बिंदास लड़की जो मेरे सामने बैठी है, उसे मैं क्यों चरित्रहीन मानूं? ……….क्या आप मानेंगे?
तभी उज्ज्वला ने मेरा ध्यान भंग किया-‘अभी मेरी बात खत्म नहीं हुई है।’ फिर एक लंबी चुप्पी के बाद सन्नाटा टूटा- ‘………आप जानते हैं। छोटे शहर की लड़कियां आगे बढ़ने की कोशिश करती हैं, तो उसके सामने कई दुश्वारियां होती हैं। कभी स्कूल और कॉलेज जाते समय शोहदों से सामना होता है तो कभी हैवानों से अपनी देह को बचाना होता है। मैं भी इन हालात का शिकार हुई। कभी धमकियां मिलीं, तो कभी रास्ते में रोक कर परेशान किया गया। एक बार तो कुछ लड़कों के समूह ने इतना तंग किया कि कई दिनों तक कालेज नहीं गई। इन्ही में से एक लड़का तो विवाह का प्रस्ताव लेकर पीछे पड़ गया। इनकार करने पर चेहरे पर तेजाब फेंकने की धमकी देने लगा।’ यह कहते हुए उसके चेहरे पर उदासी के बादल छा गए।
‘फिर…..?’ मैंने पूछा। इस सवाल पर एक बार फिर चुप्पी पसर गई हमारी मेज पर। ……….. ‘क्या बताऊं आपको? याद है वह दिन, कैसे मैं उसके चंगुल से निकल कर भागी थी।
……..वह बेहद आवेश में है। उसके मन की भड़ास निकल जाने देना चाहता हूं। वह बता रही है- ‘मैं बहुत मुश्किल से बच पाई। वह गिद्ध मेरी देह विदीर्ण नहीं कर पाया, तो सबको मुझे ही चरित्रहीन बताने लगा। कुछ सालों बाद जब उसी के एक दोस्त से मेरी शादी तय होने लगी तो उस आदमी ने उसे कह दिया-अरे, यह तो चरित्रहीन है। अब बताइए, कौन है चरित्रहीन? मैं या वह।’
…….उसकी बात कब खत्म हुई, मालूम नहीं। मैं शून्य में खो गया हूं। मुझे जड़वत देख डॉ. उज्ज्वला ने झकझोरा- ‘कहां खो गए? उदास हो गए न?’ इसीलिए मैं आपको यह सब बताना नहीं चाहती थी।’ ………. तभी वेटर ने आकर कहा, ‘सर कुछ और लेंगे?’ उसकी आवाज के साथ जैसे मैं दूसरी दुनिया से लौटा। ‘…..कुछ नहीं’, मैंने उसे जवाब दिया।
अब उज्जवला ने पूछा, ‘क्या सोचने लगे थे आप?’ ‘कुछ नहीं, बस इनसानों की फितरत के बारे में सोचने लगा था। यह बताओ कि वह शख्स अभी कहां है? जिसने तुम्हारे जीवन को तबाह करने की कोशिश की’ मैंने उसी से सवाल किया। ‘…. आपको हैरानी होगी कि वह आदमी आज सरकारी पद पर विराजमान है और दुनिया की नजरों में चरित्रवान है। यह कहते हुए उज्ज्वला का गला रुंध आया है।
मुझसे कुछ कहते नहीं बन रहा। क्या कहूं? उज्ज्वला एक डाक्टर है, तो एक लेखिका भी। उसके लिखे को लोग पढ़ते हैं। महत्त्व भी देते हैं। मगर जब वह स्त्री-पुरुष के जटिल संबंधों पर लिखती है तो फिर वही लोग सवाल उठाने लगते हैं। समाज सेवा, चिकित्सा और लेखन के बीच लोग भूल जाते हैं कि उसकी अपनी भी भावनाएं हैं। वह अपना दुख किससे कहे?
…… चलिए उज्ज्वला के मन का बोझ कम हुआ है। जब मित्र के दुख को कोई साझा करता है, तो वह उसकी पीड़ा को खुद में ओढ़ लेता है। उसके दुख को हरने की कोशिश करता है। मैं भी कर रहा हूं। उज्ज्वला आज एक कामयाब नारी है। समाज सेवा से जुड़ी कितनी ही लड़कियों की स्वाभिमान है। ………. मुझे खयालों में डूबे देख उसने मेरा कंधा फिर झकझोरा-कहां गुम हो गए फिर? चलिए लंच करते हैं। बातें तो होती रहेंगी।
सागर रत्ना में वाद्य संगीत की सुर लहरियां मुझे फिर उसी समाज में ले आई हैं, जिसका दोहरा पैमाना है। वेटर चार बार आकर चला गया है। इस बार आया तो उज्ज्वला ने फौरन रोटी और सब्जी लाने को कह दिया। वेटर आर्डर लेकर जाने लगा तो मैने कहा- भाई केसर हलवा भी ले आना। यह सुनते ही उज्ज्वला बच्ची की तरह चहकी- अरे वो गुड न्यूज। …… अरे वो गुड न्यूज। आपने तो बताया ही नहीं। ये अच्छी बात नहीं। बताइए। ……. जल्दी बताइए।
उज्ज्वला को अवार्ड मिलने की बात बताई तो उसकी आंखें चमक उठीं। चेहरे पर एक नूर आ गया है। आंसू छलक उठे हैं। वह रुमाल से पोंछने लगी तो मैंने उसे रोका-ये खुशी के आंसू हैं। तुम्हारी भावनाओं के सच्चे मोती। इन्हें छलकने दो। यह अनमोल है। ठीक वैसे ही जैसे समाज के लिए किया गया तुम्हारा योगदान। उज्ज्वला के गालों पर ढलकते आंसू में सात रंग के सपने भी दिख रहे हैं।
……..वेटर दो थालियां रख गया है। बास्केट में मिस्सी रोटियां और मटर-मशरूम की सब्जी। चटनी-सलाद और पापड़ भी है साथ में। उज्ज्वला अब नार्मल है। वह पापड़ कुतरते हुए न जाने क्या सोच रही है। मैंने उससे पूछा- कब खाओगी? चार बजने वाले हैं। भूख नहीं लगी क्या। चलो शुरू करते हैं।
लंच करने के बाद उज्ज्वला ने कहा-आज आपने मुझे एक गुड न्यूज दी। अब मैं आपको बड़ा वाला सरप्राइज देने वाली हूं। ‘…….. वह क्या?’ मैने चकित होकर पूछा। ……. उज्ज्वला ने कैब बुक करते हुए कहा- ‘हम करोलबाग चल रहे हैं। वहीं पता चल जाएगा आपको।’ उसके चेहरे पर एक चंचल मुस्कान है। मैंने कुछ नहीं पूछा उससे। कुछ तो खास बात है। जो अभी नहीं बता रही।
…….. कैब में उज्ज्वला के साथ बैठ गया हूं। सोच रहा हूं कि यह मुझे क्या सरप्राइज देना चाहती है। वह आत्मविश्वास से लबालब है। उसके चेहरे पर हजारों दीए की लौ झिलमिला रही है। कैब ड्राइवर ने रेडियो ऑन किया है। एफएम गोल्ड पर पुराना गीत बज रहा है-
तुम आ गए हो…..
नूर आ गया है…
नहीं तो, चरागों से लौ जा रही थी……..।
…….. करोलबाग में एक आलीशान घर के बाहर कैब रुकी तो उज्ज्वला बोली-चलिए उतरिए। आपका राइटर कॉटेज आ गया है। फिर उस आलीशान घर की सीढ़ियों से होते हुए हम तीसरी मंजिल पर पहुंचे तो उज्ज्वला ने कहा-……..यह रहा सरप्राइज। आपका राइटर कॉटेज। यहां आप अपना लेखन निश्चिंत होकर कीजिए। ये अब आपका।
…… उज्ज्वला अपनी धुन में है। वह बता रही है कि अपनी मेहनत की कमाई से ये पूरा तीसरा फ्लोर उसने खरीदा है। मैं ‘राइटर कॉटेज’ की लंबी-चौड़ी खिड़कियों से करोलबाग का एक बड़ा हिस्सा देख रहा हूं। दो साल पहले एक रेस्तरां में कॉफी पीते हुए उज्ज्वला से मैंने यों ही अपने दिल की बात कही थी। मेरे राइटर कॉटेज वाले सपने को इसने तो सच में साकार कर दिया। यकीन ही नहीं हो रहा। राइटर कॉटेज….! और वह भी मेरे लिए!….. मेरी पलकें नम हो उठी हैं। सोच रहा हूं कि इसके बदले में उसे क्या दूं? मेरे पास सिर्फ एक विश्वास ही तो है उसे देने के लिए। मैं यही कह सकता हूं उज्ज्वला से-
यदि तुम्हें विश्वास है
कि-
घने बादलों से घिरा होने
के बावजूद
आकाश नीला है,
तो सूरज निश्चय ही
फिर उगेगा
सामने पहाड़ के पीछे से।
मन में कविता की ये पंक्तियां रच ही रहा था कि ………उज्ज्वला ने पूछा- तो राइटर साहब, पसंद आया अपना कॉटेज? मैंने कहा- हां, बहुत। …….. खिड़की के उस पार सागर रत्ना का साइन बोर्ड देख कर मैंने कहा- उज्ज्वला क्या कॉफी पीने चलोगी अभी, सामने उस रेस्तरां में। उज्ज्वला मुस्कुरा रही है। राइटर कॉटेज खिल उठा है।
……. मैं सीढ़ियां उतर रहा हूं। ‘देखिए जरा ध्यान से उतरिए। कहीं फिसल न जाएं आप।’ उसने सचेत किया। सोच रहा हूं……जो उज्ज्वला दूसरों को गिरने से आगाह करती हो, क्या खुद कभी गिर सकती है कि समाज उसे चरित्रहीन कहें? अगर उसका संकल्प मजबूत न होता तो क्या वह सारी बाधाओं को पार कर, इतनी बड़ी कार्डियोलाजिस्ट बनती? क्या वह उन लड़कियों के लिए प्रेरणा होती, जो तमाम चुनौतियों को पार करते हुए अपने लिए नई राह बना रही हैं। ………. उज्ज्वला, तुम सच में उज्ज्वला हो। इतनी धवल कि दाग तुम तक आए भी, तो शरमा कर लौट जाए।
………..सागर रत्ना की ओर बढ़ते हुए उसने कहा-चलिए आपकी पसंद की कॉफी पीते हैं आज।
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