विशाल मौर्य ‘विशु’ की 3 प्रेम कविताएं
by literaturepoint · Published · Updated
सोचता हूँ
एक बार फिर तुमसे कहूँ कि
तुम्हारी ये बेबाक़ सीं हँसी क़यामत है
की ये तुम्हारे होंठ बिना क़िसी लिपिस्टिक के ही
गुलाबों की तरह लाल हैं
और ये तुम्हारी आँखे समंदर सी गहरी हैं
जिनमें डूब सकता है हर शख़्स
चाहे भले वो तैरना भली भांति जानता हो
सोचता हूँ
एक बार फिर तुमसे कहूँ
की तुम्हारे व्हाट्सप्प स्टेटस को तब तक देखता रहता हूँ
जब तक कि वो ग़ायब नही हो जाते
और तुमको मैंने इतने दिनों से देखा नहीं है
ये हक़ीक़त तो है
पर मुझको लगता है मैंने तुमको
एक पल में हजार बार हर रोज़ हर दिन देखा है
सोचता हूँ
एक बार फिर तुमसे कहूँ
“मुझे तुमसे इश्क़ है”
लेकिन जानती हो अब हौसला नहीं होता
हौसला इसलिए नहीं होता कि
तुम फिर से इतने सालों की मोहब्बत ,चाहत को
महज़ एक अक्षर और एक मात्रा से बने
शब्द “ना” से तौल दोगी।
मैं तुमसे कहने के इस ख़्याल को
रोज़ तुम्हारे उस पुराने “ना ”
का कफ़न पहनाकर दफ़न कर देता हूँ
दिल के किसी कोने में
मगर जानती हो ये एहसास मरता ही नहीं
हर रोज़ पैदा हो जाता है
तुम्हारे “हाँ ” के इंतज़ार में
Good job bro…..keep it on