केशव शरण की ग़ज़लें
एक क्या बतायें जिस्म, दिल को और जां को क्या हुआ बिंध गये सब इक तरफ़ से, पर कमां को क्या हुआ उम्र तन की हो गयी है, इसलिए बस इसलिए! किसलिए हो जाय बूढ़ा, मन जवां को क्या हुआ देखकर दो प्रेमियों को क्यों परेशां हाल है क्यों नहीं...
एक क्या बतायें जिस्म, दिल को और जां को क्या हुआ बिंध गये सब इक तरफ़ से, पर कमां को क्या हुआ उम्र तन की हो गयी है, इसलिए बस इसलिए! किसलिए हो जाय बूढ़ा, मन जवां को क्या हुआ देखकर दो प्रेमियों को क्यों परेशां हाल है क्यों नहीं...
मेज पर रखा सफेद हाथी लिखने की मेज़ पर सिरेमिक का सफ़ेद हाथी हैउसके हौदे पर उगा हैहरेभरे पत्तों वाला मनी प्लांटवह तिरछी आँखों से देख रहामेरी उँगलियों से उगते कविता के कुकरमत्तेजल्द ही यहाँ उदासी की फ़सल पनपेगी. गुलाबी फ्रॉक पहने एक लड़की टहलती चली आती हैरोज़ाना मेरी बोसीदा स्मृति के...
पुस्तक समीक्षाडी एम मिश्र के ग़ज़ल संग्रह लेकिन सवाल टेढ़ा है पर लिखा है श्रीधर मिश्र ने साहित्यिक गतिविधियों की बात करें तो यह सक्रिय व सचेत साहित्यिक कर्म का प्राथमिक व सबसे जरूरी दायित्व होता है कि वह अपने समय को रचे भी व उसकी समीक्षा भी करे। इस...
मुझमें हो तुमजब लौट जाते हो तो आखिर में थोड़ा बच जाते हो तुम मुझमें। मेरी आंखों की चमक और नरम हथेलियों के गुलाबीपन में या निहारती हुई अपनी आंखों में छोड़ जाते हो मुझमें बहुत कुछ- जो एकटक तकती रहती हैं मेरे होठों के नीचे के तिल को। कभी...
1. आग लगी आग लगी हैउस बस्ती मेंआग लगी है सर्दी बड़ी हैहाथ ताप लोजलती है झोपड़ीआज तुम भीताप लो आग लगी हैताप लोअब तो केवलराख बची है!!सुलगते अंगारे इस दिल मेंजीवन भरआग अभीकहां बुझी है!अंगारों संग राख बची है!! आग हमारेपेट में लगी हैरोम रोम मेंभड़की हैसुबह शामबुझाओ कितनाबार बार यहक्यों...
गरीब औरत गरीबी में लिपटी औरतों की तकलीफेंतब दुगुनी हो जाती है,जब सुबह कुदाल लेकर निकला पतिशाम ढले हड़िया(देशी शराब) पीकर लौटता है,बच्चे माँ को घूरते हैंबापू आलू-चावल क्यूँ नहीं लाया?माँ बदहवास -सी घूरती हैखौलते अदहनऔर शराबी पति को… होठों पर सूखी पपड़ी कोजीभ से चाटतीहर माहबचाती है पगार से...
अपनी अपनी बारी सरकारी अस्पताल में एक डॉक्टर के कमरे के बाहर पंक्तिबद्ध लोग अपनी-अपनी बारी की प्रतीक्षा में थे। वहीं कतार में एक बुजुर्ग महिला भी थीं जो प्रतीक्षा के पलों में अपने झोले में से कभी बिस्किट तो कभी चूरन की गोली और कभी सौंफ जैसी कोई चीज़...
सौदा दिन पर दिन रोजी रोटी का जुगाड़ मुश्किल होता जा रहा है। मार्केट जैसे कोई आता ही नहीं ….ऐसे कैसे चलेगा गुजारा ?….कमाई कुछ भी नहीं और खर्चा … सुरसा की तरह हमेशा मुंह बाये रहता…करीब हफ्ते भर से बिटिया रोज कहती है -“पापा मेरा बस्ता फट गया है”...
वह बहुत चिंतित था. ‘लाकडाउन की वजह से काम से बैठे हुए चार महीने से ऊपर हो गए. फैक्ट्री चालू हो तब तो कोई काम हो और पैसा आए. हमारी हालत तो ऐसी है. न सड़क पर बंट रहे खाने पीने की सामग्री ले सकते हैं और न ही फ्री...
रामानंद बाबू को अस्पताल में भर्ती हुए आज दो महीने हो गये। वे कर्क रोग से ग्रसित हैं। उनकी सेवा-सुश्रुषा करने के लिए उनका सबसे छोटा बेटा बंसी भी उनके साथ अस्पताल में ही रहता है। बंसी की मां को गुजरे हुए क़रीब पांच वर्ष हो चुके हैं। अपनी मां...
गोपाल मोहन मिश्र लहेरिया सराय, दरभंगा 9631674694 हराया है तूफ़ानों को, मगर अब ये क्या तमाशा है, हवा करती है जब हलचल, बदन ये कांप जाता है। है सूरज रौशनी देता, सभी ये जानते तो हैं, है आग दिल में बसी कितनी, न कोई भाँप पाता है। है ताकत प्रेम...
दिलीप कुमार पहली वो वो स्त्रियों के सौन्दर्य का सामान, कट-पीस का ब्लाउज, पेटीकोट आदि बेचा करती थी मगर रोड पर दुकान न होने के कारण उसका माल बिक नहीं पाता था वैसे वो बहुत सी महिलाओं के घर जाकर भी कुछ न कुछ बेचने का प्रयास किया करती थी।...
आलोक कौशिक शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य)पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखनसाहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में दर्जनों रचनाएं प्रकाशितपता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, बिहार, 851101,Email devraajkaushik1989@gmail.com ओमप्रकाश भारतीय उर्फ पलटू जी शहर के सबसे बड़े उद्योगपति होने के साथ ही फेमस डॉग लवर अर्थात् प्रसिद्ध कुत्ता प्रेमी भी...
चर्चित किताब कहानी संग्रह : आईएसओ 9000 लेखक : जयनंदन मूल्य : 380 रुपए (हार्ड कवर) प्रकाशक : नेशनल पेपरबैक्स, दिल्ली सत्येंन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव जयनंदन संघर्षशील लोगों के कथाकार हैं। जयनन्दन मज़दूरों के बीच रहे हैं। उनकी ज़िन्दगी जी है। खुद भी मजदूर रहे हैं। इसलिए उनके दर्द को उनसे...
विजय शंकर विकुज जन्म 12 सितंबर 1957, आसनसोल शिक्षा – स्नातक प्रकाशन – वागर्थ, वर्तमान साहित्य, कतार, संवेद, निष्कर्ष, मधुमती, कथाबिम्ब, प्रेरणा, जनसत्ता, छपते छपते, उत्तर प्रदेश, भाषा, युद्धरत आम आदमी, वैचारिकी, स्वाधीनता, सृजनपथ, समय के साखी इत्यादि पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित। कहानी के अलावा आलेख, संस्मरण, रिपोतार्ज, साक्षात्कार तथा अन्य कई विधाओं में लेखन। बहुत – सी रचनाओं...
संजीव ठाकुर ताल पंखा चलता हन-हन–हन हवा निकलती सन-सन–सन । टिक-टिक टिक–टिक चले घड़ी ठक-ठक –ठक–ठक करे छड़ी । बूंदें गिरतीं टिप–टिप–टिप आँधी आती हिप–हिप–हिप । फू–फू–फू फुफकारे नाग धू–धू-धू जल जाए आग । कोयल बोले कुहू-कुहू पपीहा बोले पिऊ-पिऊ । धिनक-धिनक–धिन बाजे ताल लहर–लहर लहराए बाल ।...
चर्चित किताब उपन्यास : धर्मपुर लॉज लेखिका : प्रज्ञा प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन मूल्य : 200 रुपए सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव मज़दूरों की अंधेरी गंदी बस्ती में अब कोई कुछ नहीं बोलता एक अजीब सन्नाटे ने कफन की तरह ढांप लिया है पूरी बस्ती को जहां हर चीज भयावह लगती है।...
संजय शांडिल्य जन्म : 15 अगस्त, 1970 |स्थान : जढ़ुआ बाजार, हाजीपुर | शिक्षा : स्नातकोत्तर (प्राणीशास्त्र) | वृत्ति : अध्यापन | रंगकर्म से गहरा जुड़ाव | बचपन और किशोरावस्था में कई नाटकों में अभिनय | प्रकाशन : कविताएँ हिंदी की...
कैलाश सत्यार्थी कवि नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मशहूर बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं हर साल होली पर उगते थे इंद्रधनुष दिल खोल कर लुटाते थे रंग मैं उन्हीं रंगों से सराबोर होकर तरबतर कर डालता था तुम्हें भी तब हम एक हो जाते थे अपनी बाहरी और भीतरी पहचानें भूल...
केन के कवि केदारनाथ अग्रवाल की पुण्यतिथि 22 जून 2020 को जनवादी लेखक मंच एवं मुक्तिचक्र पत्रिका के तत्वाधान में छत्तीसगढ़ जगदलपुर के रहवासी जाने माने रंगकर्मी एवं कवि विजय सिंह को वर्ष 2020 का जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान दिया जायेगा यह निर्णय “मुक्तिचक्र केदार सम्मान कमेटी बाँदा” ने लिया...
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