बच्चों को पुस्तकें उपहार में दी जानी चाहिए : दिविक रमेश
20वीं शताब्दी के आठवें दशक में अपने पहले ही कविता–संग्रह ‘रास्ते के बीच’ से चर्चित हो जाने वाले सुप्रतिष्ठित कवि दिविक रमेश को 38 वर्ष की आयु में ही ‘रास्ते के बीच ’ और ‘खुली आँखों में आकाश’ जैसी साहित्यिक कृतियों पर सोवियत लैंड नेहरू अवॉर्ड मिला। दिविक रमेश ने बाल साहित्य के क्षेत्र में बहुत ही उल्लेखनीय कार्य किया है। हिंदी के अलावा कोरियाई भाषा में इनकी कविताओं का संग्रह ‘से दल अइ ग्योल हान’ अर्थात् चिड़िया का ब्याह आया। इन्होंने कोरियाई प्राचीन और आधुनिक कविताओं का संग्रह ‘कोरियाई कविता–यात्रा’ का संपादन किया, जो साहित्य अकादमी से प्रकाशित हुआ है। साथ ही, इन्होंने कोरियाई बाल कविताओं और कोरियाई लोक कथाओं का संकलन-संपादन भी किया है। इनकी बाल-कविताओं को संगीतबद्ध भी किया गया है। इनकी बाल-रचनाएं पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र बोर्ड, कर्नाटक, केरल तथा दिल्ली सहित विभिन्न स्कूलों की विभिन्न कक्षाओं में पढ़ायी जा रही हैं। बाल साहित्य से जुड़े कुछ मुद्दों पर इनसे बातचीत की वीणा भाटिया ने।
प्र. अभी हाल में अहमदाबाद में ‘बाल साहित्य : अतीत, वर्तमान और भविष्य’ पर साहित्य अकादमी के तत्वावधान में संगोष्ठी हुई थी। इसमें मुख्य चर्चा किन मुद्दों पर केंद्रित रही?
उ. मुख्यत: पहले, आज और भविष्य के बाल साहित्य के रूपों और उसकी अवधारणाओं अर्थात उससे संबंधित सोच अथवा दृष्टि का विवेचन प्रस्तुत किया गया । साथ ही, कुछ विद्वानों ने बाल साहित्य को इतिहास की दृष्टि से भी प्रस्तुत किया । इसके अतिरिक्त बाल साहित्य का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने वाले साहित्यकारों ने अपने बाल साहित्य लेखन की यात्रा के बारे में बताया और उसके प्रति अपने विचार भी रखे।
प्र. बाल साहित्य के प्रसार में यानी बच्चों तक उनकी पहुंच हो पाने में मुख्य बाधाएं आपकी नज़र में क्या हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?
उ. माता -पिता, अभिभावाकों और अध्यापकों द्वारा पुस्तक-संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कुछ खास नहीं किया जाना दुखदायी है। हमें बच्चों का साथी बनना चाहिए । अभी देखने में ये आता है कि हम बच्चों से उनके स्तर पर जाकर संवाद नहीं कर पा रहे हैं। इन बाधाओं को दूर करने के लिए बच्चों के मन को समझना, उनके प्रति संवेदनशील होना और उनके साथ समय गुजारना जरूरी है।
प्र. आप लंबे अर्से से बच्चों के लिए लिखते रहे हैं। पहले की अपेक्षा आज क्या स्थिति है इस क्षेत्र में?
उ. गुणवत्ता की दृष्टि से आज का हिंदी बाल साहित्य बहुत ऊंचे पायदान पर पहुंच चुका है। कविता और कहानी के क्षेत्र में बहुत ही उत्कृष्ट साहित्य उपलब्ध है। कितने ही स्थापित और नए साहित्यकार उभर रहे हैं। साहित्यकारों का ध्यान उन बच्चों की ओर भी जा रहा है जो अब तक उपेक्षित थे । नई भाषा और नए शिल्प आकार ले रहे हैं । इधर प्रवीण शुक्ल और वीणा भाटिया की रचनाएं बाल साहित्य में नए द्वार खोलने को तत्पर नजर आ रही हैं। वीणा भाटिया की ‘नल की हड़ताल’ बहुत अच्छी कविता है। आज का बाल साहित्य उपदेशात्मक और विषयवादी नहीं , बल्कि कलात्मक अनुभव है ।
प्र. पहले नंदन, चंपक, पराग, चंदामामा आदि बाल पत्रिकाएं काफी लोकप्रिय थीं और इनका प्रसार भी काफी था। आज क्या स्थिति है?
उ. आज भी अनेक अच्छी पत्रिकाएं निकल रही हैं जिनमें से कुछ हैं- बालवाटिका, बालवाणी, बाल भारती, नंदन, चकमक, बच्चों का देश, बाल प्रभा, देवपुत्र , अपूर्व उड़ान, बाला प्रहरी इत्यादि । बड़ों के लिए निकल रही कुछ पत्रिकाएं भी समय-समय पर बाल साहित्य विशेषांक निकालती रहती हैं। कथा, आजकल, साहित्य अमृत, पूर्वोत्तर साहित्य विमर्श, हिमप्रस्थ, शीराजा, नया ज्ञानोदय, हिंदुस्तानी, द्वीप लहरी, साहित्य समीर, सार समीक्षा आदि कितनी ही पत्रिकाएं हैं, जिनके नाम लिए जा सकते हैं। जनसत्ता, हिंदी मिलाप आदि समाचार पत्र भी इस दिशा में निरंतर सहयोग कर रहे हैं।
प्र. बच्चों के मानस के निर्माण में बाल साहित्य की भूमिका सबसे बड़ी है। यह उन्हें संवेदनशील और जागरूक बनाती है। पर क्या आज इंटरनेट-स्मार्टफोन क्रांति के युग में बच्चों का पहले की तरह साहित्य से लगाव रह गया है?
उ. आपने यथास्थिति को सही पकड़ा है । यही तो चुनौती है । मजेदार बात यह है कि पुस्तकें तो हैं, लेकिन उनके प्रति संस्कार देने वाला माहौल कमजोर है । इस ओर युद्ध स्तर पर ध्यान देना होगा । इसके लिए बच्चों को पुस्तकों से जोड़ने का प्रयास जरूरी है। यह काम अभिभावक और शिक्षक ही कर सकते हैं। पुस्तकें बच्चों के मन पर अमिट छाप छोड़ती हैं। उनमें संस्कार निर्मित करती हैं।
प्र. अपनी पीढ़ी के कवियों में सिर्फ़ आपने ही बाल साहित्य लेखन का काम लगातार किया है, कोरियाई भाषा में भी अनुवाद आदि का काम किया। क्या आपका कभी अपने बाल पाठकों से संवाद हुआ है?
उ. धन्यवाद। आज कई लेखक हैं जो समर्पित भाव से बहुत अच्छा लिख रहे हैं। बच्चों के बीच निरंतर रहने का अवसर न मिले तो मैं लिख ही न सकूंगा। इस संबंध में मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं। कितने ही बच्चे तो मेरी कविताएं सुनाने को भी उत्सुक नजर आते हैं ।
प्र. आज बाल साहित्य के क्षेत्र में वो कौन लोग हैं जो बेहतर काम कर रहे हैं?
उ. बहुत हैं । कोई छूट जाएगा तो अन्याय हो जाएगा । प्रकाशन विभाग, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित मेरी पुस्तक ‘हिंदी बाल साहित्य कुछ पड़ाव ‘ पढ़ सकते हैं ।
प्र. क्या बाल साहित्य को आधुनिक तकनीक यानी इंटरनेट-मोबाइल पर उपलब्ध कराने से बच्चों तक उनकी पहुंच ज्यादा हो सकती है? यह सही रहेगा या किताब ही बेहतर माध्यम है?
उ. ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। दोनों का ही अस्तित्व जरूरी है। लेकिन बच्चों के लिए पुस्तकें बहुत जरूरी हैं, ये मैं पहले भी कह चुका हूं। पुस्तक मूल माध्यम है। इसका प्रभाव बाल-मन पर स्थायी होता है। पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की जरूरत है। विभिन्न अवसरों पर बच्चों को पुस्तकें उपहार के रूप में दी जानी चाहिए।
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MANNIYA VEENA BHATIA JI-
NAMASTY-
AAP KA SAKSHATKAAR SH DIVIK RAMESH JI SE PADA– KAFI ACHHA AUR GYANVARDHAK HAI-
VAASTAV MEIN BACHON KO SAHITYA KE SANDARBH MEIN SADA HI UPEKSHIT KIYA JATA HAI- AAP SAADHUVAAD KI PATRA HAIN-
OM SAPRA-
DELHI
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