केशव शरण की कविताएं
- उत्तरोत्तर विकास
सैकड़ों को
डुबोया गया
हज़ारों के
विकास के लिए
एक दिन
हज़ारों भी डूब गये
लाखों के विकास के लिए
अब करोड़ों के
विकास के लिए
सोचा जा रहा है
2. कल कौन-से देवता का दिन?
भरी कटोरियां
और कलश लेकर
मंदिर जाते हुए
उसे देख रहे थे लोग
भूखी-प्यासी नज़रों से
उसने देवता को लगाया
भोग
और पुण्य से भरकर लौटी
घर
कल वह फिर निकलेगी
कल कौन-से देवता का दिन है
3. बहुत ग़लतियां
वह आदमी
हर विषय में
इतनी समझदारी की
बात कर रहा था
कि मैं मुग्ध !
मेरी उसमें
दिलचस्पी जगी
मैं उसके इतिहास में गया
उसने बहुत ग़लतियां कर रखी थीं
4. जुते हुए खेत में
मैं पेड़ के
नीचे बैठा था
और मेरे सामने खेत थे
जुते हुए
इनके मालिक
इनमें क्या बोयेंगे
मुझे कुछ भी अनुमान नहीं था।
मकई, चना, रहर, गेहूं, धान
सब गड्ड-मड्ड हो रहे थे।
कई कोशिशों के बाद भी
जब नहीं सुलझी यह पहेली
तो मैंने समाधान का शब्द खोजा- सपने।
वे सपने बोयेंगे
अपने।
5. शहर में धूल
धूल लिये
फिर रहे हैं हम
या धूल
हमें लिये
फिर रही है
हम जहां भी जाते हैं
जिधर भी जाते हैं
वह हमारे साथ लगी रहती है
आजकल हवा भी ख़ूब बहती है
क्या फागुन के दिन हैं ?
शहर में
फूलों का कहीं पता नहीं
लेकिन यह है
सर्वत्र
सर्वदा
बुरा लगता है जब यह आंख में घुस जाती है
और जीभ किरकिराती है
सांसों में ज़बरन समाती है
पलकों पर बैठ जाती है
त्वचा से चिपक जाती है
कपड़ों पर
अलग
रोज़-ब-रोज़
इसका घनत्व ही नहीं
इसकी बदमाशियां भी
बढ़ती जाती हैं
शहर में अंधाधुंध विकास की जो बयार बह रही है
उसका यह फ़ायदा ले रही है
और बहुत बे-क़ायदा ले रही है
6. आशा
भेड़ों को बांधकर
रखा गया
हरे चारे के बग़ैर
बाड़े में
महीनों
भेड़ियों से बचाव के लिए
बाड़े में
मर गयी न
बहुत-सी भेंड़े
तो उन्हें फेंक दिया गया
भेड़िए उनकी हड्डियां तक खा गये
भेड़ियों को भगाना भी था
मगर भेड़िए बढ़ते गये
हारकर भेड़ों को
छोड़ दिया गया
भेड़ियों के रहमो-करम पर
कुछ को ही खायेंगे
भेड़िए
बाक़ी सब तो दूध देंगी
ऊन देंगी
गड़ेरियों को
बुलाये गये हैं
सात समुंदर पार से
आयेंगे शिकारी
जो मार गिरायेंगे
भेड़ियों को
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केशव शरण
प्रकाशित कृतियां-
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भाई केशव शरण जी की इन सारगर्भित, सार्थक कविताओं के लिए, विशेषतः ‘उत्तरोत्तर विकास’ और ‘जुते हुए खेत में’ के लिए, उन्हें बधाई!