राजेश ‘ललित’ की कविताएं
1. आग लगी
आग लगी है
उस बस्ती में
आग लगी है
सर्दी बड़ी है
हाथ ताप लो
जलती है झोपड़ी
आज तुम भी
ताप लो
आग लगी है
ताप लो
अब तो केवल
राख बची है!!
सुलगते अंगारे
इस दिल में
जीवन भर
आग अभी
कहां बुझी है!
अंगारों संग
राख बची है!!
आग हमारे
पेट में लगी है
रोम रोम में
भड़की है
सुबह शाम
बुझाओ कितना
बार बार यह
क्यों लगती है
फिर से पेट में
आग लगी है।
- दरवाजा
दरवाजा तो
खुला था मेरा
हमेशा की तरह
तुमने झांका
तक नहीं
मत खटखटाओ
यूँ ही आ जाओ
जब तक दिल
धड़केगा
यह खुला रहेगा
- सच और झूठ
झूठ ने पहने हैं
कपड़े चकाचक
चल पड़ा भुनाने
खुद को
जब तब
सच अब तक नंगा
खड़ा है।
- चांदनी
रात को
चांद ने
खिड़की से
उचक कर
झांका
चांदनी से
भर गया
मेरा कमरा
चाँद चला गया
फिर से
खिड़की मैने
बंद ही रखी
चाँदनी समेटे
कमरे में बना रहा
अहसास चाँद का
- तारे
तारे टिमटिमाते
आंखें मिचमिचाते
जागते रहे
रात भर
पहरा देते
आसमान का
अरमान अभी
मचल रहे
किसी तूलिका
से रंग भरने को
- सूरज
सूरज ने
खिलखिला कर
भर दिया
संसार में रंग
लाल गुलाबी
कभी सुनहरा
कभी पीला
अकेलेपन का
अहसास रहा
सालता
हररोज
सुबह से शाम तक