संजय शांडिल्य की प्रेम कविताएं
लौटना
जरूरी नहीं
कि लौटो यथार्थ की तरह
स्वप्न की भी तरह
तुम लौट सकती हो जीवन में
जरूरी नहीं
कि पानी की तरह लौटो
प्यास की भी तरह
लौट सकती हो आत्मा में
रोटी की तरह नहीं
तो भूख की तरह
फूल की तरह नहीं
तो सुगंध की तरह
लौट सकती हो
और हाँ,
जरूरी नहीं कि लौटना
कहीं से यहीं के लिए हो
यहाँ से कहीं और के लिए भी
तुम लौट सकती हो…
जाते हुए प्यार की उदासी से
जाते हुए प्यार की उदासी से
बनी है शाम
उसके न होने की वेदना से
रात बनी है
भोर
लौटने की प्रतीक्षा से बना है
और दिन
आने के बाद की हँसी से…
दिन खिला हुआ है तुम्हारी तरह
दिन खिला हुआ है
तुम्हारी तरह
तुम्हारी तरह
मुरझा भी जाएगा
तुम्हारी ही तरह
फिर निकल आएगा
क्षितिज से…
किसी के प्यार में
किसी के प्यार में
यहाँ तुम डूब जाते हो
किसी जीवन के लिए
कहीं से निकल जाते हो
यह बर्ताव
सूर्य बनाता है तुम्हें
सूर्य को
तुम्हारे-जैसा आदमी…
फर्क
वसंत में
जिस दिन
अपार घृणा से
तुम मुझे देख रही थीं
उसी दिन
पलाश के रूप में
मैं तुम्हें देख रहा था…
संजय शांडिल्य
जन्म : 15 अगस्त, 1970 |
स्थान : जढ़ुआ बाजार, हाजीपुर |
शिक्षा : स्नातकोत्तर (प्राणीशास्त्र) |
वृत्ति : अध्यापन | रंगकर्म से गहरा जुड़ाव | बचपन और किशोरावस्था में कई नाटकों में अभिनय |
प्रकाशन : कविताएँ आलोचना, वागर्थ, आजकल, समकालीन भारतीय साहित्य, दोआबा समेत विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
तीन कविता-संकलन ‘समय का पुल’, ‘लौटते हुए का होना’ और ‘प्रेम में होने की तरह’ (प्रेम कविताओं का संकलन) शीघ्र प्रकाश्य |
संपर्क : साकेतपुरी, आर. एन. कॉलेज फील्ड से पूरब, हाजीपुर (वैशाली), पिन : 844101 (बिहार) |
मो. नं. : 9430800034, 7979062845
शुक्रिया और आभार! 💐💐
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