सारुल बागला की कविताएं
रेखाचित्र : रोहित प्रसाद पथिक
- ईश्वर
ये दुनिया उनके लिए नहीं बनाई गयी
जिनके लिए सिर्फ आसमानी
पाप और पुण्य से बड़ी कोई चीज़ नहीं
फर्ज़ कीजिए कि ईश्वर कोई
नयी दुनिया बनाने में व्यस्त हो जाता है
या फिर चला जाता है दावत पर कहीं
किसी स्वाद में डूबकर
अनुपस्थित हो जाता है
तो आप कितने इंसान रहेंगे?
बेशक मुझे एतराज़ नहीं है
लेकिन आप यकीन मानिए
आप बस उतने ही इंसान है
जितना ईश्वर की अनुपस्थिति में होते हैं।
- बेबसी
कुछ भी न कह पाने की बेबसी
और सब कुछ कह लेने की बेसब्री के बीच
सूरज यूं ही उग कर बुझ जाता है
मद्धिम और उदास दीये सा।
शब्दों को खूबसूरती चाहिए
क्यूंकि उन्हें बहुत दिनों तक रहना
हमसे बहुत बड़ा है उनका जीवन
नदी मांगती है निश्चितता
जो कि मेरे पास किसी भी तरह से है
और वो दोस्त भी अच्छे नहीं लगते
जो ऐसी किसी जंग में जीत के सुख में जी रहे हैं।
जीने के लिए और प्यार करने के लिए
सिर्फ उम्र इजाजत देती है
वक्त कभी नहीं देता
किसी भी सदी में नहीं कहा गया
ये सदी प्यार की सदी है
और इस बार ज्यादा मिठास हुई है
हर बार कांट बोये गए और
सारे अधूरे ही मारे गए हैं मीठे सपने
तो प्यार कर लेना
वक्त को जो करना है वो कर ही लेगा
मुझे भी अब अपना चेहरा अच्छा नहीं लगता
तो इससे पहले ही कर लेना प्यार
नही तो इतनी सुबह नींदों से लड़ना बहुत तकलीफ देता है ।
- जो गूंगे थे
जो गूंगे थे उन्हें सराहा गया
उनके शानदार उद्बोधन के लिए
और बोलने वालों के मुंह
हमेशा बंद किये गये
इतिहास के कारखाने में
हमेशा ढाले गये सींखचे
कि कोई कैदी बगावत न कर सके
फिर भी तो जिन्दा हैं हम
बजा रहे हैं अपनी जंजीरें
और गा रहे हैं
उड़ान का गीत
अब भी दोस्त है गौरैया
अब भी तो जिन्दा हैं हम ।
- नही मैं कवि नहीं
नहीं मैं कवि नहीं
कविता का कोई कारोबार नहीं
मेरे पास
कुछ सपने बेचता हूँ
जिंदगी की सड़क के किनारे
एक ठेले पर ।
- शून्यकाल
क्या तुम नही आओगे ?
तीन बजने के बाद
तीन बजकर एक मिनट के बीच
कुछ नहीं होगा
यह समय इतिहास का
शून्यकाल घोषित किया जायेगा
सर्दी और गर्मी के मौसम के बीच
बसंत की अनुपस्थिति पर
तुम कोई स्वर नहीं उठाओगे?
सारा पतझड़ तुम्हारी राह देखेगा
और तुम सोचते रहोगे
कि मेरे पैर लाचार हैं
जब सारे गुलाब चुरा लिए जायेंगे
तब तुम सफ़ेद जड़ों में
खुशबू तलाशोगे और तुम्हें
नाइट्रोजन की भारी गंध मिलेगी
आटे के कनस्तर में हाथ डालोगे
और पाओगे कि बारूद है
तुम मृत्यु ,विरोध ,संघर्ष
जो भी हो ,आ जाओ
नहीं तो फिर ,आना भी चाहोगे
तो अपने घर में
चोर दरवाजा तलाशना पड़ेगा।
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–सारुल बागला
मो. नो. 9504263723
परिचय: बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय से भौतिकी में स्नातक, आईआईटी (आईएसएम), धनबाद से भू-भौतिकी में परास्नातक,
ONGC Ankleshwar, गुजरात में कार्यरत।
Email : sarulbagla.bhu@gmail.com
रेखा चित्र
रोहित प्रसाद पथिक