शिवानी शर्मा की 5 लघुकथाएं
- अपनी अपनी बारी
सरकारी अस्पताल में एक डॉक्टर के कमरे के बाहर पंक्तिबद्ध लोग अपनी-अपनी बारी की प्रतीक्षा में थे। वहीं कतार में एक बुजुर्ग महिला भी थीं जो प्रतीक्षा के पलों में अपने झोले में से कभी बिस्किट तो कभी चूरन की गोली और कभी सौंफ जैसी कोई चीज़ निकाल कर खा कम रही थीं और आसपास लोगों को खाने के लिए अधिक पूछ रही थीं पर कोई ले नहीं रहा था।
उन पर लोगों का ध्यान तब गया जब उनकी बारी आने पर उन्होंने अपने पीछे वाले लोगों को अपने से पहले भेज दिया और फिर किसी दूसरे डॉक्टर के लिए लगी कतार में लग गईं।वहाँ भी उन्होंने यही क्रम जारी रखा! पति को दिखाने आई अनीता ने अम्मा के पास जाकर पूछा “आपको किस डॉक्टर को दिखाना है?”
“जो भी देख लेगा उसी को दिखा दूंगी।” बेफिक्री से जवाब आया।
“पर ऐसे अपनी बारी पर दूसरों को भेजती रहेंगी तो कैसे दिखा पाएंगी आप?”
“कोई नी! तुम चिंता मत करो।आखिरी में देख कर ही जाएंगे डॉ साहब!” वो हँसकर बोलीं।
“ऐसे तो आपको बहुत देर तक बैठना पड़ेगा!” अनीता आश्चर्य में थी।
“महीने में चार-पाँच बार आ ही जाती हूँ। सब पहचानते हैं मुझे!घर में अकेले बैठने से तो यहाँ बैठना ज्यादा अच्छा है! बहुत सारे लोगों को देख-सुन तो पाती हूँ!” उन्होंने चूरन की गोली अनीता की ओर बढ़ाते हुए किसी तरह शुरू हुई इस बातचीत का क्रम जारी रखने का प्रयास किया!
- हिस्सेदारी
“तुम हर समय बच्चों की प्लेट में से कुछ न कुछ क्यों खाती हो?कितना चिड़चिड़ करते हैं कभी कभी वो!” राघव ने अपनी पत्नी ऋचा से कुछ नाराज़गी जताई।
“कभी कभी चिड़चिड़ाते हैं पर जब मैं नहीं खाती तो खुद ही कहते हैं कि आओ चख लो! ये नहीं दिखाई देता तुम्हें?”
“पर तुम ऐसा करती ही क्यों हो? अपना-अपना खाएं ना सब! इसमें क्या बुराई है?”
ऋचा गम्भीर हो गई “जब हम छोटे थे तब से मम्मी की आदत थी अपने हिस्से की हर चीज़ भैया को देने की! भैया की आदत ही हो गई सबसे ज़्यादा लेने की! पापा खाने से पहले हमेशा पूछते थे ‘बच्चों ने खाया? तुमने खाया?’ तो अपनी शादी और बच्चे होने के बाद भैया की अपने बीवी-बच्चों का ख़्याल रखने की आदत तो रही पर उन्हें कभी लगा ही नहीं कि मम्मी को भी खाने की इच्छा हो सकती है!पापा तो बहुत पहले ही चले गए थे! बाद में घर में चीज़ें आतीं और खत्म हो जातीं। मम्मी को पता तो रहता था पर…”
बहते हुए आंसुओं को पौंछते हुए भरे गले से ऋचा ने आगे कहा “अक्सर मम्मी कहती थीं कि ‘अपने हलक का निवाला खिलाने का हर्जाना भर रही हूं!’ इसलिए मैं अपनी हिस्सेदारी अभी से तय कर रही हूं!”
- बात निकलेगी तो फिर…
किशोर वय की पोती की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाकर सास चिल्ला-चिल्ला कर पुलिस को बयान दे रही थी “यो मां ई भगा दी छोरी नै!! मैं देखी रात तीन बजे कुंडी चडाते ईनै! कांई ठौर कि छोरी ने भगाए पाछे चढ्यारी ही!”
पुलिस ने मां से कड़ी पूछताछ शुरू की पर मां कुछ भी न बोले घूंघट की आड़ में रोती रही, रोती ही रही…
आखिरकार सास गुस्से में आग-बबूला होकर बोली “भागणों तो या खुद बी चाए थी!पर खुद ना भाग सकी तो छोरी ने भगा दी।”
बहू ने लपक लिया मौका! घूंघट ऊँचा उठाकर सास के सामने खड़ी हो गई “हां भागणों चाए थी! पर थें पुलिस को कारण तो बतावो नी!”
पुलिस अधिकारी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से सास की ओर देखा।
सास ने अपने पति की ओर देखा! वो नज़रें चुरा कर वहाँ से खिसक लिया!
अब सास ने अपना बयान वापस ले लिया है।
गुमशुदगी की रिपोर्ट भी निरस्त करवा दी गई है।
- दायित्व-निवृत्ति
सेवानिवृत्ति के पैसों में से मधु और सुरेश ने अपने मकान में कुछ पुनर्निर्माण करवाया और नये सिरे से पूरा घर सजाया। फिर घर में एक छोटी सी दावत रखी जिसमें बेटी-दामाद, बेटा-बहू, मधु और सुरेश के भाई-बहन के परिवार ही आमंत्रित थे। सालों साल जिस घर में रहे थे, बच्चे उसका नया रूप देखकर आश्चर्यचकित रह गए!
बिटिया बोली “मम्मा!ये हैंडीक्राफ्ट और स्टाइल का फ्यूज़न किससे डिज़ाइन करवाया? बहुत प्यारा लग रहा है! आर्किटेक्ट से मिलवाना भई ,अब तो हम भी उसी से काम करवाएंगे!”
मधु और सुरेश ने मुस्कुराते हुए एक-दूसरे की ओर देखा। फिर मधु ने कहा “हम दोनों ने अपनी अपनी पसंद और सपने को मिक्स एंड मैच करके सब डिज़ाइन किया है।”
“आप?आप दोनों ने? आपकी अपनी-अपनी पसंद और सपने! मतलब हमें तो कभी पता ही नहीं चला कि आप दोनों की पसंद और सपने ऐसे है!” अब बेटे ने चौंकते हुए कहा!
“हां! क्योंकि तब हमारी पसंद और सपने तुम दोनों का सुंदर और सुरक्षित भविष्य था!अब जब वो दायित्व पूरा हो गया तो इसकी बारी आई!” सुरेश ने बेटे के कंधे थपथपाते हुए मुस्कुराहट बिखेरी।
दोनों बच्चों की आंखों में नमी और दिल में अजीब सी टीस थी!
- शुभचिंतक
अचानक एक बिज़नस मीटिंग में नीलाम सतीश को देखते ही पास चली आई “हे सतीश कैसे हो? सोलह साल बाद भी वैसे के वैसे ही! गुड यार!
“ओह नीलम! लम्बे समय बाद! कहां हो आजकल? कोई खोज-खबर ही नहीं!” सतीश गर्मजोशी से मिला।चलो थोड़ी देर बैठते हैं उधर।
अपनी-अपनी कॉफी लेकर भीड़ से कुछ अलग एक कोने की टेबल पर दोनों बैठ गये।
“तुम्हारे तलाक़ का सुनकर दुख भी हुआ और आश्चर्य भी!” बात नीलम ने शुरू की।
“ओह्! तुमने सब खबर रखी है!” सतीश को अचरज हुआ।
“रखती तो नहीं पर अविनाश मिला था कुछ दिन पहले,उसी ने बताया।”
“हम्म! चार साल भी नहीं चली शादी! सिंगल फैमिली से थी, उसे हमारे रिश्तेदारों का आना-जाना पसंद नहीं आया। घर को धर्मशाला कहती थी।”
“मतलब सब उसकी ही गलती थी!”
“और नहीं तो क्या? मेरे चाचा-चाची, बुआ,मौसी, मामा-मामी,बहनें और उनके परिवार! ये सब मेरे परिवार का हिस्सा हैं। शुभचिंतक हैं मेरे! उसके लिए मैं इन सबको कैसे छोड़ सकता था! सब नाराज़ और दुखी रहने लगे थे!”
“अब सब खुश हैं तुमसे?”
“हां बिल्कुल! बहुत ख्याल रखते हैं सब मेरा!”
“तभी तो तुम पिछले बारह साल से सिंगल हो!
“मतलब?”
“मतलब ये कि दिल्ली जैसे शहर में फ्री फोकट में ठहरने की इतनी बड़ी इतनी अच्छी फुली ऐसी कोठी वो भी प्राइम लोकेशन पर! साथ में ड्राइवर, लॉन्ड्री और कुक भी! कोई भी शुभचिंतक क्यों चाहेगा कि तुम्हारी शादी हो और इन सब पर रोक लगे!” नीलम ने शुभचिंतक शब्द पर ज़ोर देते हुए आगे कहा “अगर शुभचिंतक ऐसे हों तो दुश्मन किसे कहेंगे?”
सतीश के हाथ से कॉफी का प्याला छलक गया!
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शिवानी शर्मा
निवास: जयपुर
शिक्षाः बी.कॉम. ,एम.बी.ए., मोन्टेसरी डिप्लोमा, पत्रकारिता एवं जनसंचार में पी जी डिप्लोमा
ई मेल: shivani6370@gmail.com
सम्प्रतिः स्वतन्त्र लेखन, रेडियो जॉकी एवं मंच संयोजक एवं संचालक
एकल काव्य संग्रह: “कुछ ख़्वाब कुछ हक़ीक़त” 2016 में प्रकाशित, (राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा 2017 में अनुदानित) , राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय पत्रिकाओं में कविताएं,लघु कथाएं, व्यंग्य आलेख, समसामयिक विषयों पर लेख एवं कहानियां निरन्तर प्रकाशित
1989 से आकाशवाणी एंकर एवं 2015 से दूरदर्शन से सम्बद्ध
“अजमेर पोएट्री क्लब” (APC) की संस्थापक सदस्य
समाज की हकीकत दर्शाती हुई कहानियों बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत बढ़िया कहानियाँ। बधाई शिवानी जी।
एक से बढ़कर एक कथा।
लाजबाब